ये उठती आवाज दबा ना पायोगे,
है बुलंद इकबाल झुका ना पाओगे।
मैं धुली हुई दीवारों पर लिख जाऊंगा,
हैं पथ्थर के लफ्ज़ मिटा ना पाओगे।
धधक रहे हैं हर सीने में अंगारे,
इंक़लाब की आग बुझा ना पाओगे।
चाहे जितना जोर लगालो अबकी बार,
फिर से झूठे ख्वाब दिखा ना पाओगे।
टूटी गर इस बार हमारी उम्मींदें।
याद रहे अरमान सजा ना पाओगे।
नहीं दूसरा था विकल्प मजबूरी है,
दर्द बाँट कर चलो छुपाना पाओगे।
आखिर कब तक ख़ामोशी को ओढेंगे,
सब्र खो गया बोझ उठा ना पाओगे।
चलो नमन करलें भारत माँ को वंदन,
इस माटी का कर्ज़ चुका ना पाओगे।
कब तक भागोगे सच से दाएं-बांए।
इतने सारे पाप कहाँ दफ़्नाओगे।