''मगर मंज़िल नहीं है''
मेरे इखित्यार में तो है ,मगर हांसिल नहीं है ,
सफर भी,रास्ता भी है ,मगर मंजिल नहीं है|
महज़ दस्तूर है ,मिलना-मिलाना ,दोस्ताना ,
बदलते दौर में ,कोई यकीं काबिल नहीं है ।
वो इक दिन लौट आएंगे ,मेरी उम्मीद उनसे ,
फ़कत गुमराह है,वो आदमी पागल नहीं है ।
तू रूठेगा अगर,हम भी मनाना सीख लेंगे,
ज़मीं है प्यार में मौजूद ,अब दलदल नहीं है ।
उठा लो नाज़ तुम उनके,जो दिल से तुम्हारा हो,
चलेंगे साथ हम मिलकर ,क़दम बोझिल नहीं हैं ।
मेरी कोशिश यही है,हम दिलों को जीत लेंगे ,
हमें उनको जगाना है ,जहाँ हलचल नहीं है ।
ना हो पतवार गर'अनुराग',तो मुश्किल भँवर है,
लहर के साथ हो लेना ,अगर साहिल नहीं है |