फिर उडी मिटटी,हवाएं धुंध बादल छा गया,
है कोई संकट धरा पर देखना गहरा गया।
सूझता अब कुछ नहीं,अपना-पराया दोस्तों,
भुखमरी ज़ालिम गरीबी का बवंडर आ गया।
हो रहे बदनाम हम-तुम सब्र की भी इन्तहां,
है जुबां खामोश पर हाथो में खंज़र आ गया।
मौत तक कायम रहेगा आदमी तेरा करम ,
ज़िन्दगी दोहराए पे तेरा मुक़द्दर आ गया।
कल तलक मशहूर थे गुमनाम है इस दौर में,
हो गए एहसास अब सब वक्त है आया-गया।
पूछ मत कीमत हमारा मोल क्या ,बे-दाम हूँ
प्यार के रिश्तों को क्यों बाज़ार में तौला गया।
जिद करो 'अनुराग'बोलो वक्त से पहचान दे,
थरथराती सांस,लौ,जान-ओ-दिल घबरा गया।