दर्द अगर गहराई से गहरा होगा,
जरा संभलना यारों कुछ खतरा होगा।
अनहोनी का दंश सहा हंसकर मैंने,
क्या मेरी साँसों पर भी पहरा होगा।
उम्मीदों से कम था ज्यादा मिला नहीं,
मुझे पता है माल कहाँ ठहरा होगा।
हमें नहीं स्वीकार दिखावा अपनापन,
कुछ भी मोल चुका दो ना मेरा होगा।
ख़ामोशी को शोर घोल कर पी लेगा,
क्या जाने सच पे कब तक पर्दा होगा।
दिन,दोपहरी,शाम अकेलापन देखो,
तन्हाई का आलम है मेला होगा।
आओ हम एहसास संभाले चलते हैं,