कैसे कह दूँ कि सवेरा हो गया,
और भी गहरा अँधेरा हो गया।
हूँ धुआं औ धुंध के आगोश में,
आज साय से भी खतरा हो गया।
कोई तो समझे हमारे दर्द को,
क्यों ज़माना गूंगा-बहरा हो गया।
मीठे सपनो को संजोये सो गया,
जाग कर देखा तो पहरा हो गया।
जिनके जिम्में थी हिफाज़त दोस्तों,
शख्स वो काफिर लुटेरा हो गया।
सामने आकर हमें इतना बता दो,
फिर ज़िन्दगी में कौन तेरा हो गया।
अब भला दीपक जलाकर क्या करूँ,
लो घर जले बस्ती सवेरा हो गया।