हम आज फिर हालात से आगे निकल,
अब फूँक देगे क्रांति का मिलके बिगुल।
लो ढाल और तलवार को पिघला दिया,
हैं हौंसले फौलाद से गहरे , गरल।
फिर खौलता लावा हुआ जोश -ए -जूनून,
हम बह उठे ज्वालामुखी बनके तरल।
यूँ तोड़कर चट्टान दरिया चल पड़ा,
इन पत्थरों से कब रुकीं धारें धवल।
गुनगुनाने दो मधुर संगीत छेड़ो देवता,
देशभक्ति है रगो में हो गए मनसे प्रबल।
सीपियों उम्मीद के मोती उगल भी दीजिये,
हम लाये गहराई से चुन-चुन के तरल ।
व्यर्थ में तुम वक़्त की परतें कुरेदा मत करो,
हो गए हैं खंडहर उम्मीद सोने के महल।