मेरी आवाज़ ख़ामोशी के परदे चीर डालेगी,
कहाँ तक बेजुबानी की हमें ज़ंजीर बांधेगी।
बदलने हैं हमें तारीख में इतिहास के पन्ने,
जगाओ हौंसलों से ही तेरी तक़दीर जागेगी।
मचलता जोश का तूफान सीने में संभालो
लहू हर देशद्रोही का मेरी शमशीर मांगेगी।
ज़मीने दलदली होंगी पिघल जाएँगी चट्टानें,
हवाएँ आग पीकर के तरल अंगा'र दागेगीं।
चलेगा झूमकर जिस दिन जवां हिन्दोस्तां,
दिशाएँ काँप जाएंगी हर इक दीवार भागेगी।
कमीनो को सरल भाषा समझ आतीं नहीं है,
तुम्हारी गर्दने फिर वक़्त की तलवार नापेगी।
तुम्हारा नाम तक मिट जाएगा सारे जहाँ से,
कभी तो सब्र की आवारगी ललकार लाँघेगी।