है यार शीशे का मुक़द्दर क्या करोगे तुम,
हाथ में सबके है पत्थर क्या करोगे तुम।
हाँ वो कभी फुर्सत में मिलते ही नहीं हैं,
उनको सपनो में बुलाकर क्या करोगे तुम।
आँसुंओं को फिर सिरहाने रख लिए हमने,
अब आँख से नीदें चुराकर क्या करोगे तुम।
उम्र भर चलती रहेंगी आँधियाँ काफ़िर ,
फिर दोवारा घर बनाकर क्या करोगे तुम।
बस्तियों में लोग कम बस भीड़ रहती है,
व्यर्थ में गिनती कराकर क्या करोगे तुम।
दो-एक दिन का शोर है थम जाएगा यूँ ही,
बे-बजह चर्चा में आकर क्या करोगे तुम।
झांक कर अपने गिरेबां देख लो पहले,
आइना हमको दिखाकर क्या करोगो तुम।