मगर मैं अब भी जिंदा हूँ
जिसे तुम आग कहते हो , उसे मैं रोज पीता हूँ ,
क़यामत भी गई मिलकर ,मगर मैं अब भी जिंदा हूँ।
बदल डालेंगे ये हालात , अब पक्का इरादा है,
संभलना वक्त को होगा ,मैं परिवर्तन का झोंखा हूँ।
खुला छोडो ना ज़ख्मों को ,न ये नासूर बन जाएँ,
पिला दो घूंट लोहा लो मैं , अब फौलाद बनता हूँ।
जो मुड़कर देख लेंगे वो ,हमारे साथ चल देंगी दिशाएं,
समय मुझमें पिघलता है , हवा से तेज चलता हूँ।
कि जब सूरज पिघलता है , अँधेरे टूट जाते हैं,
मगर मैं जागरण हूँ जो ,निशा में छोड़ देता हूँ।
ना वो उलझन समझते ,ना ह्रदय की छटपटाहट को,
वो इतना दर्द बुनते हैं , कि मैं खुद टूट जाता हूँ।
लहर को चीरकर वो बूंद बदल बन गई बरसात सावन,
बुझेगी प्यास धरती की , दिया 'अनुराग' जलता हूँ।