पी गए ज़हर भी ज़िन्दगी मान कर,
और कायम रहे आन -ईमान पर।
मैं तराशा गया पत्थरों की तरह,
देवता बन गया एक एहसान पर।
गुम गई मुझमें मेरी हक़ीक़त कहीं,
लोग खामोश हैं मिरी पहचान पर।
थरथराते हुए दीप की लौ न बन,
मत अंधेरों से डर खेल जा जान पर।
भूलना मत कभी वक़्त की बेरुखी,
आंच आने न दो मान-सम्मान पर।
साथ हो या न हो पर जुदाई न हो,
ये खुदा मुश्किलें थोड़ी आसान कर।
वक़्त मौसम मुक़द्दर बदलता रहे,
करना कर करम आज इंसान पर।
बेवफ़ा ही सही एक रिश्ता तो है,
जो निभाता है शिद्दत से उन्वान पर।
चाहतों में समंदर की गहराइयाँ,
है सफर मौज का देख तूफान पर।