
ज़िन्दगी चाहतों की अलग राह हो,
रहनुमां हो,ना कोई गुमराह हो।
घर अँधेरे में हमें पहचान लें ,
यूँ दरो- दीवार को परवाह हो।
चोट जब हमको लगे वो रो पड़ें,
ऐसे रिश्तों की सभी को चाह हो।
भूल कर भी ना भुला पाया कभी,
तुम हमारे रूह-ए-दिल की आह हो।
कोशिशों की धूप में जलना पडा,
मैं नहीं सोचा हमारी वाह हो।
मत कुरेदो घाव भरने दीजिए,
पीर पहले से अगर आगाह हो।
भूख से ज्यादा मिलेगा क्या करूंगा,
मौला इतना दीजिये निर्वाह हो।
मत न सिखा फिरका-परस्ती तू इन्हें,
सिजदा करो मंदिर-ओ-दरगाह हो।