आग पी - पी कर बुझाने आये हैं,
कुछ फ़र्ज़ इस तरह निभाने आये हैं।
मासूम या अंजान हैं हालात से,
ख़ुशी में आंसूं बहाने आये हैं।
उनकी चाहत में दिखी दीवानगी,
मौत से नज़रें मिलाने आये हैं।
कुछ भी सजाएं दो हमें मंजूर है,
हम तो हाल-ए-दिल सुनाने आये हैं।
सब भूल कर शिक़वे-शिकायत रंजिशें,
फिर वक़्त से लम्हें चुराने आये हैं।
इस क़दर लानत ना भेजो मेहरबां,
यार कहाँ बस्ती बसाने आये हैं।
तुम मत रखो उम्मीद अपनो से कभी,
जो उम्र भर नश्तर चुभाने आये हैं।
वो हो गए हैं आज बे - परदा मगर,
आइना हमको दिखाने आये हैं।
थाम लो ऊँगली मेरी 'अनुराग' तुम,
कितनी मुश्किल से ठिकाने आये हैं।