ज़हर पीता रहा ,पर कहा कुछ नहीं,
आज हिस्से में गम के सिवा कुछ नहीं।
दिखते बेदाग़ दामन,सभी के यहां,
चोर है कौन साहू पता कुछ नहीं।
ज़ुल्म से है हर इक शै,परेशां मगर ,
अब यकीं हो गया है ख़ुदा कुछ नहीं।
ज़िन्दगी आज फिर जश्न तुमको मुबारक़ ,
मैं तड़पता रहूँ तो गिला कुछ नहीं।
कारवां में बहुत दिन सफर कर लिया,
आज तन्हाई में सूझता कुछ नहीं।
लुट गया कब-कहाँ और क्या लुट गया,
आम चर्चा है मुझको पता कुछ नहीं।
शाम को रौनक़ें सुबह खामोशियाँ,
रात भर में हुआ यार क्या कुछ नहीं।
आग से आग दिल की बुझाता रहा,
खाक़ में मिल गया हूँ बचा कुछ नहीं।
भूल जाते हैं 'अनुराग' वादे-वफ़ा,
मत कहो आप उनकी,खता कुछ नहीं।