अपने सपने का घर बनाया है,
और ईमान-ओ-दिल बसाया है।
तुम भी आना बधाइयां लेकर,
आज फिर यहाँ सबको बुलाया है।
समझ न ये दौर-ए-आजमाइस है,
वक्त पिघलाकर आइना बनाया है।
बैठा हूँ सवालों की गर्म रेत पर,
चिरागों को बुझाकर जलाया है।
ये परिंदे डर गये हैं बे-हिसाब,
फिर किसी ने घोंसला जलाया है।
मैं एक मुद्दत से प्यासा हूँ दोस्तों,
लीजिये ज़हर अपना-पराया है।
आज तक भूला नहीं ज़ुल्म-ओ-सितम,
लम्हां-लम्हां ज़िन्दगी ने रुलाया हैं।