टूट जाता हूँ फिर भी बिखरता नहीं,
ख़ास क्या बात है मरके मरता नहीं।
तुमसे मिलना मिलाना ख्यालों में है,
आईना बन गया खुद संवरता नहीं।
दस्त-ऐ-सहरा सा तपता रहा उम्र भर,
समय सबका है रुकता ठहरता नहीं।
दाग दामन के धोए मगर रूह तक,
बहुत गहरा है धोकर निखरता नहीं।
आप क्या जानते प्यास होती है क्या,
खुश्क-ए-मौसम से होकर गुजरता नहीं।
कुछ ना हासिल हुआ बुझ गये हौंसले,
कैसे उजड़ा हूँ यूँ तो उजड़ता नहीं।
जाने कैसे निभाएंगे तुमसे वफ़ा ,
कभी ज़िद से तो बाहर निकलता नहीं।
क्या बुझाएंगी ये आंधियां आजकल,
कहीं दिया मंदिरों में भी जलता नहीं।
मेरे चारों तरफ हैं अँधेरे बसर,
नेक क़तरा भी सूरज पिघलता नहीं।