दिन के उजाले भी रातों के हवाले हैं,
आँखों में आंसू लिए पांव में छाले हैं।
कह ना सकेंगे सच्ची अपनी जुबान से,
सीने में बैचैनी होंठों पे ताले हैं।
मरियां उम्मीदे मेरी आ जाओ थाम लो,
तुम्हारे इन्तजार में अब तक संभाले हैं।
कोई ना मुरीद बचा दिल-ए-जागीर का,
नाज़ उठायें कहां खाने दे लाले हैं।
पड़ गईं गांठे साड्डी रिश्तों की डोर में,
आबरू ने मोल दिए कीमतां उछाले हैं।
पलकों को मूंदने से मिट्टे परछाईं ना,
भूखे कई रोज से थोड़े निबाले हैं।
जी रख्ख दिये हार गये सपने बटोर के,
ना लोग सुनने वाले न कहने वाले है।
कटियां पतंगें मेरी ज़िन्दगी की डोर से,
बिछडे जो आज कद्दे मिलने ना वाले हैं।