दुआओं में दवाओं सा असर है,
बरतना प्यार से वरना ज़हर है।
तसव्वुर से निकल कर सामने आए,
छुपा लो फिर इन्हें सबकी नज़र है।
अब परिंदे भी नहीं रहते हुजूर,
बगीचे में महज़ सूखे शजर हैं।
मेरी नस-नस में भरा ज़ख्म-ए-लहू,
लगा देना कहीं मरहम अगर है।
बड़ी मुश्किल में हूँ कैसे बताऊँ,
रकीबों का कम अपनों का डर है।
हवाओं से गिले-शिकबे न कर तू,
तुम्हारी ज़िन्दगी इनकी मेहर है।
तू सफीनो पर यकीं ज्यादा न कर,
हर लहर में एक तूफानी लहर है।
सोच कर चल कल का सूरज न मिले,
ज़िन्दगी है साँस बुझने का डर है,
जो भीड़ में जिंदा रहा तन्हा मगर,
मेरे आगे - पीछे एक शहर है।