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ठीक दरिया के किनारे आशियाना मत बना,
तू सरहद-ए-सैलाव से दोस्ताना मत बढा।
ये नाज़ुक दौर है रहना संभल कर आदमीं,
है गर जरा सी बात जान-ए-जोखिम मत उठा।
हैं लेकिन साथ अपने भी कई मजबूरिया
अगर हैं आपकी कमजोरियां तो मत गिना।
जीत की बाज़ी लगी है हारने की शर्त पर,
प्यास पानी से बुझेगी साँसों से मत बुझा।
यार रिश्तों को इबादत की तरह पूजा किया
यारा मेरे जज्बात का यूँ तमाशा मत बना।
भूल करदी ज़िन्दगी को हाशिये पर ला दिया,
दोस्त बनकर ना सही पर दुश्मनी तो मत निभा।
आपने साहिल चुना मैंने लहरों का जुनूं ,
मगर तू आज दीवानों पे आंसू मत बहा।