*ग़ज़ल*
हम हैं दीवाने आपके तू भी मेरा है,
कुछ न कुछ तो बात है लगने लगा है।
हों खुली या बंद आँखे सिर्फ तुम हो ,
यार तू हर अक्श में दिखने लगा है ।
लो आइना भी बन गया बुत आपका,
ज़र्रा-ज़र्रा बा-अदब झुकने लगा है।
घर से बाहर भी निकल सकता नहीं,
देख पागलपन जहाँ हंसने लगा है।
जिस्म को तुम रूह तक महका गए,
मुस्कुराना फूलों को खलने लगा है।
अब जरुरत ही नहीं हमको,दवा की,
छू लिया तुमने ज़ख़म भरने लगा है।
'अनुराग' भी बाजार में मिल जाएगा,
तुम खरीदोगे तो दिल बिकने लगा है।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग' Dt.-1803216 CRAI OLP