***ग़ज़ल***
हमने बुलंदियों को भी बौना बना दिया,
तोडा गुरुर उनको घुटनो पे ला दिया।
डरता नहीं हूँ मैं कल की चुनौतियों से,
हालात को मजबूत मुकम्बल बना दिया।
भूला नहीं हूँ मैं ज़ुल्म-ओ-सितम का दौर,
जब तुमने आंसुओं को मुक़द्दर बना दिया।
हारा नहीं हूँ वक़्त से जीता नहीं अगर,
हमको तो वक़्त ने ही सिकंदर बना दिया।
हालांकि गर्दिशों की आंधीयाँ नहीं थमीं,
इन सबके बाबजूद भी गुलिस्तां बना दिया।
सर से हमारे नीला अम्बर सिमट रहा है,
क़दमों के नीचे किसने दल-दल बिछा दिया।
लौटा नहीं है आजतक कोई भी कब्र से,
'अनुराग' इंतज़ार में खुदी को भुला दिया।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग'Dt.04042016/CCRAI/OLP/Docut.