***ग़ज़ल***
मेरे सपनो की ताबीर हो जाएगी,
तुम जो आओगे तो पीर सो जाएगी।
हसरतों ने पिघलने की ज़िद ठान ली,
अब नदी मेरी तक़दीर हो जाएगी।
इतनी ज्यादा नहीं पर मोहब्बत तो है,
ये शर्तीयां तुमको मंजूर हो जाएगी।
चोट गहरी है ज्यादा सहेजो ना तुम,
धीरे-धीरे ये नासूर हो जाएगी।
तुम ना समझोगे दुःख-दर्द की बानगी,
कैसे दिल तेरी जागीर हो जाएगी।
आज फिर ज़िन्दगी मिल गई मोड़ पर,
लगता फिर नई एक तस्वीर बन जाएगी।
कल्पनाओं के मंजर असल बन गए दोस्तों,
बातें अब दिल की तहरीर बन जाएगी।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग'Dt.02042016/CCRAI/OLP/Docut.