
लहर-आब हूँ फिर भी प्यासा हूँ,
दिन के उजालों में धुंआ सा हूँ।
जब-जब शराफ़त रास आई है,
तब-तब ज़माने ने तराशा हूँ|
दोस्तों रुकता नहीं थक-हार कर,
मगर दूर मंजिल से जुदा सा हूँ।
कभी फुर्सत में बैठेंगे ज्यादा,
अब तक अकेला कारवाँ सा हूँ।
अँधेरी रात में जुग्नूँ बुला लो,
तारों का बुझता निशाँ सा हूँ।
हमीं थे आपके नूर-ऐ-नज़र,
उस प्यार का पहला सफ़ा सा हूँ।
इन सवालों से निखर जाएंगे रंग
क्यों आज तक इनसे बचा सा हूँ।
रास्ता दे दो गुजरने दीजिये,
यहाँ जर्रा-जर्रा आसमां सा हूँ।
वक़्त की चौखट पे सजदे कीजिए,
मैं आज-कल केवल तमाशा हूँ।
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