जब ख्यालों में ख्वाब आते हैं,
बेरहम बेहिसाब आते हैं।
जश्न कैसा घुटन में जिंदा हूँ,
यूँ तो मौसम शबाव आते हैं।
जिनको उगते हुए नहीं देखा,
उनके हिस्से ख़िताब आते हैं।
बात हद से गुजर गई जिस दिन,
फिर तो बस इन्क्लाब आते हैं।
कांच कितना भी आहिस्ता तोड़ो,
टूटकर भी तनाव आते हैं।
जो अंधेरों में गुम गए थे कहीं,
उनके घर आफताब आते हैं।
जिनकी बस चुप्पियों के चर्चे थे,
वो भी हाज़िर जबाव आते हैं।
अपनी मरजी नहीं बता सकते,
किसलिए इन्त्खाब आते हैं।
कुछ तो टूटा हुआ है सीने में,
सहमे-सहमें जबाव आते हैं।