- उड़ना परिंदों की तरह और चहचहाना चाहता हूँ।
क़ैद हैं ताबीज में मेरी उम्मीदें और सुकून,
इक दफा ताज़ा हवा में इनको लाना चाहता हूँ,
सांस तो चलती रही पर मर चुका है आदमीं क्यों,
मैं ज़िन्दगी की गूंज को फिर जगाना चाहता हूँ।
तुम नहीं तो कुछ नहीं ऐसा नहीं तुम सोचना भी,
आपके घर में टंगा मांजी दिखाना चाहता हूँ
वक़्त तो हर हाल में आगे निकलकर जायेगा फिर,
इसलिए मैं वक़्त से नज़रें मिलाना चाहता हूँ।
आजतक तो चुप्पियों ने खूब बहलाया है हमको
जोड़कर संवाद सुर में गुनगुनाना चाहता हूँ।
तेजतर बदलाव हैं कहीं टूट ना जाएँ किनारे,
सरफिरी रफ़्तार को मैं आजमाना चाहता हूँ ।
उंगलियां हमको दिखाना छोड़ दो अच्छा रहेगा,
मशवरा है प्यार से सुनना-सुनाना चाहता हूँ।
मत कुरेदो ज़ख़्म रहने दो गम-ए-रुसबाइयों को,
सब हमें मंजूर है रिश्ता निभाना चाहता हूँ।