जीते हैं मगर जीने के अंदाज़ सिखा दो,
आकर नादान परिंदों को परबाज़ बना दो।
मैं धूप में तपते मंजर की छाया बन जाऊं,
आग में जलते रहने का गुण आज सिखा दो।
है ये दुनिया बाज़ार यहां सब कुछ बिकता है,
तय करलो अपनी क़ीमत बस आवाज़ लगा दो।
तूफां ना सही आंधी बनकर मौसम को बदल,
एहसासे तुम्हारी ताक़त का आज करा दो।
बागी है मेरी भूख-प्यास खैरात न बांट ,
मिट्टी हूँ या सोना मेरी औक़ात बता दो।
वो आए तो हैं मिलने लेकिन मतलब लेकर,
क्यों युद्ध अभी तक जारी है वो राज बता दो।
हो रहे विभाजित ह्रदय और मर्यादा दूषित,
हैं निर्वासित कृष्ण पुनः वापस इक बार बुला लो।