
ख़ुशी और ग़म सब खुदा की महर है,
जिओ प्यार से ज़िन्दगी मुख़्तसर है।
हुनर आप में है खुदी को तराशो,
तुम्हारा मुक़द्दर तुम्हारा हुनर है।
समझ सोच कर वक़्त को आजमाना,
दवाओं की तासीर में भी ज़हर है।
मिरे साथ में भी यही कशमकश है
लगे है पराया मगर अपना घर है।
हवा और पानी बदल कर तो देखो,
सुबह की बहर में ग़ज़ल दोपहर है।
अगर लहर में गुम गया एक साहिल
समझिएगा तूफां का पुख़्ता असर है।
जिधर देखिये उस तरफ है तमाशा,
तमाशाइयों का शह्र बाज़ीगर है।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग Dt. ०५/०७/2016