सुनो आज हद से गुजर जाएंगे हम,
मुमकिन नहीं वो भी कर जाएंगे हम।
सूरज निचोड कर भरेंगे अंजुली में ,
फिर अंधेरे-अँधेरे बिखर जाएंगे हम।
ये लम्हों की हलचल बताती है कुछ तो,
यूँ फिसलते-फिसलते संवर जाएंगे हम।
जब उतर आएंगे आसमां के नखत सब,
वो जमीं पर रहेंगे किधर जाएंगे हम।
खोल दो मुठ्ठी हवा को क़ैद मत करना,
दम घुट रहा है वक़्त का मर जाएंगे हम।
तल्खियां आवाज़ की ढलती खराशों में,
हैं नाजुक अलफ़ाज़ बिखर जायेंगे हम ।
ज़िंदा नज़्में सांस धड़कती तहरीरों में,
हूँ आज सिर्फ गुमनाम गुजर जाएंगे हम।
अलग-अलग किरदार ज़िन्दगी हार-गए है,
अगले-पिछले कर्ज देने फिर आएंगे हम।