
बाँध लो अक्षर सिरों को जोड़ना तुम,
शब्द बन जाएंगे दिल से बोलना तुम।
मुझको लगता है पिघल जाएंगे पल,
प्यार के बंधन अभी मत खोलना तुम।
राह से भटके हुए हैं रहनुमां फिर,
हाल-ए-दिल इनका ज़रा पूछना तुम।
मिल गया है अपनी मंज़िल से मुरीद,
फिर नया रास्ता खुलेगा देखना तुम।
पिंजड़े लेकर के परिंदे उड़ गए हैं,
कम किसी के हौंसले न आंकना तुम।
जब भी उड़ा है आँधियों के संग वो,
हक़-ए-परबाजी इन्हें न सौपना तुम।
आज ज़ख्मों पर तुम्हीं मरहम लगाना,
वो लगाएँगे कभी मत सोचना तुम।
अब मुस्कुराने की बजह पूंछा न कर,
न रुलाने का बहाना ढूँढना तुम।
जब धूप की चादर जिस्म पर ओढ़ ली,
वक़्त से डरना -डराना छोड़ना तुम।
चल मुश्किलों के हल बहुत नजदीक हैं,
जीत होगी हारकर न टूटना तुम।