तुमको नहीं अगर मेरा खयाल मत करो,
हर बात पर खडे नये सवाल मत करो।
कोशिश करो तुम वक़्त की रफ़्तार बन सको ,
होने दो जीत-हार का मलाल मत करो।
इमारत बुलंद ना सही पर नींव तो रखो,
ज़र-ज़र है खंडहर इसे बहाल मत करो।
यहाँ क़दम-क़दम पर मिलती हैं ठोकरें,
है उम्मींदों से कारवाँ कंगाल मत कर।
सहने दो कश्तियों को लहरों के थपेड़े,
मांझी की सूझ-बूझ को निढाल मत करो।
बोझिल है ज़िन्दगी अगर रख दो उतार कर,
नाकामियों की धूप को मशाल मत करो।
सबको रहने दो अमन ईमान से मगर ,
अपने ही खून को अभी हलाल मत करो।