मत उसूलों को पाबन्द इतना करो,
खोल दो मुठ्ठियां और जिद ना करो।
अच्छे लगते हैं उड़ते परिंदे मगन,
ये हवा क़ैद तुम आज अब ना करो।
ले चलो नाव को उस किनारे तलक,
ठीक मंझ्धार में मत बहाना करो।
है बहुत खूबसूरत सुहाना सफ़र,
यार रिश्तों को फिर आशिक़ाना करो।
रहने दो इल्म को आन - ईमान पर,
छोड़ शिक़वे-गिले बात माना करो।
आ बसा लें चलो इक जहाँ प्यार का,
तन्हा-तनहा कहीं तुम दिखा ना करो।
ये ज़मीं आसमां हमसफर कारवां,
आप मंजिल से पहले रुका ना करो।
नजदीक से महसूस कर तू ज़िन्दगी,
झूठ एहसास को आशना ना करो।
दौर-ए-गम में भी तुम मुस्कुरा कर जिओ,
जान 'अनुराग' को अनसुना ना करो।