**ग़ज़ल***
टूटकर यूँ बिखर नहीं सकता,
मत डराओ मैं डर नहीं सकता।
तुमसे नाराज़ हूँ मगर फिर भी,
वादा करके मुकर नहीं सकता।
मैंने कब तुमसे शिकायत की है,
चलना होगा ठहर नहीं सकता।
तुम खयालों से भी नहीं जाते,
भूल जाऊं ये कर नहीं सकता।
आजकल खुद से बात करता हूँ,
प्यार ज़िंदा है मर नहीं सकता।
कोशिशें हो गईं हैं नाकाफी,
अब मुकद्दर संवर नहीं सकता।
जितनी मरजी तराश ले मुझको,
अपनी नज़रों से गिर नहीं सकता।
ख्वाहिश-ए-दिल बेशुमार ज़िंदा हैं,
चाह करके भी मर नहीं सकता।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग'Dt. 01042016/CCRAI/OLP/Docut