आ -आ के मेरे गांव से ठंडी हवाएँ पूछती हैं,
लौटकर आये ना क्यों ये सूनी राहें पूछती हैं।
जबसे गये मौसम गये सावन की वो पुरवायां,
आम की डाली से झूलों की पलायें पूछती हैं।
गोरियाँ पनघट पे अब भी राहें तकती हैं तेरी,
पायलों से पांव की से रूठी अदाएं पूंछती हैं।
गूंजते पगडंडियों में वही सुरीले प्रेमगीत,
ये फूल,पत्ते,तितलियां ब्याकुल लताएं पूछती हैं।
दूर से आते मुसाफिर पर जमीं माँ की निगाहें,
जब गुजरता पास से,क्या-कुछ कराहें पूछती हैं|
रहे वे-वतन,मज़बूरीयां,दिल-दर्द मुद्दत से उदास,
प्रियतमा की आहों से पिघली दुआएं पूछती हैं।
कहो सरज़मीं पर लौटने की आरजू क्यों बुझ गई,
इन सरहदों की दूर तक फैली भुजाएं पूछती हैं।
वो खेत और खलिहान घर'अनुराग'वो अँगनाइयां,
सब दुखी मन से थकी सी अपनी खतायें पूछती हैं।