ज़ख्म मेहबूब हैं दवा आँसू,
बुझ गई आग हैं धुआँ आँसू।
रफ्ता-रफ्ता सुकून देते हैं,
मुश्किलों में हैं कारवां आँसू। ,
जब से खुदगर्ज हो गईं साँसे,
बन गये खून मेहरबां आँसू।
घुल गये रंग जब अंधेरों में,
राह के बन गए निशाँ आँसू।
आप क्या सोचकर मिले तन्हा,
हमसफ़र बन गए दुआ आँसू।
शाम रंगीन है उजाले हैं,
पर अंधेरों की दास्ताँ आँसू।
मेहर तक ज़िन्दगी नहीं रहनी,
मौत का आखिरी बयाँ आँसू।
अश्क पलकों में झिलमिलाते हैं,
बुनते तारों का आस्मां आँसू।
दर्द 'अनुराग' की बुलंदी है,
आख़िरी घर मकां जहां आँसू।