गीता सार कहता है कि अतीत को अधिक नहीं कुरेदना चाहिए। चूंकि वह कष्ट देता है और गीता सार यह भी मार्गदर्शन करता है कि भविष्य के प्रति भी अधिक संवेदनशील नहीं होना चाहिए। क्योंकि वह भी हमारे मन में भय उत्पन्न करता है। कहने का अभिप्राय यह है कि दोनों परिस्थितियां मानसिक तनाव उत्पन्न करती हैं और मानसिक तनाव प्रायः हानिकारक ही नहीं बल्कि कष्टदायक भी होता है। जिससे बचने हेतु हमें गीता के तीसरे सार पर ध्यानाकर्षित करते हुए जीवन की कड़वी सच्चाइयों को भूलकर वर्तमान जीवन अर्थात आज के दिन को प्रसन्नतापूर्वक फूलों सी खिली मुस्कुराहट से झूमते हुए व्यतीत करने पर बल देना चाहिए। जो आपके अनुपम ही नहीं बल्कि सुनहरे वर्तमान पलों को आनन्द ही आनन्द देगा। जिससे आपका भाग्य "सौभाग्य" में परिवर्तित हो जाएगा।
ध्यान रहे कि जो बीत गया वह वापस नहीं आएगा और भविष्य के गर्भ में कोई झांक नहीं सकता। जिसकी चिंता करना व्यर्थ ही नहीं बल्कि हानिकारक भी है। जिससे बचना हमारा मौलिक अधिकार ही नहीं बल्कि मौलिक कर्तव्य भी है। जिसके लिए हमें वर्तमान पर आधारित अपनी खुशियों की प्राप्ति हेतु अपने ज्ञान का प्रयोग सुयोग्यता से सुनिश्चित करना चाहिए।
सर्वविदित है कि जीवन को सुखमय बनाने वाले मात्र ईश्वर ही हैं और ईश्वरीय आशीर्वाद उन्हीं को प्राप्त होती है, जो सत्कर्मों पर आधारित निस्वार्थ भाव से मानवीय सेवाओं पर प्रकाश डालते हुए जीवनयापन करते हैं। चूंकि गीत के अनुसार कर्म कदापि निष्फल नहीं होते और वह कर्म देर सबेर मानव जीवन में सुखद/दुखद का आधार अवश्य बनते हैं। वैसे भी कलयुग कर्म प्रधान युग है। जिसमें तुरन्त फल की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए भूल से भी भूल मत करो और दूसरों को प्रभावित करने से पहले यह जान लो कि समय परिवर्तनशील है। जिसके आधार पर यदि आज ईश्वर पड़ोसी की प्रतीक्षा ले रहे हैं तो कल तुम्हारा भी शक्तिपरीक्षण हो सकता है। जिसके बचाव के लिए आप दूसरों को दुखी न करें। चूंकि वही दुःख ब्याज सहित दिन दुगनी और रात चौगुनी वृद्धि कर आपकी झोली में पड़ने वाला है। जिससे सतर्क रहने के लिए भी गीता के उपदेश से सबक लेना हमारा मौलिक कर्तव्य है।
उदाहरणार्थ आज आपका शत्रु यदि मानसिक तनाव से जूझ रहा है तो उसके आत्मविश्वास का उपहास न उड़ाएं। हो सकता है कल वही व्यक्तित्व आपको आपके मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने का आधार बने। चूंकि एकान्त में अत्यधिक शक्ति होती है और एकांत ही एकाग्रता को सुनिश्चित करता है। जो शक्ति हमारी सभ्यता और संस्कृति में शिवशक्ति का प्रतीक मानी जाती है। जिनके ताण्डव नृत्य से तीनों लोकों में त्राहीमाम मच जाता है।
अतः गीता के उपदेशित सार का चारों पहर मनन करते हुए हमें आज के दिन के हर पल को आनन्दमय करने का भौतिक प्रयास करना चाहिए। ताकि हमारा, हमारे परिवार का, हमारी बिरादरी सहित सम्पूर्ण संसार के प्राणियों का जीवन सुखमय हो सके। ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।