मानव जीवन एक शोधात्मक प्रश्न पत्र होता है जिसका सीधा असर कर्मों पर आधारित होता है और चलचित्र की भॉंति प्रतिपल अपने गंतव्य की ओर अग्रसर होता रहता है। ध्यान रहे उक्त शोधकार्यों के लिए सम्पूर्ण समाज एक प्रयोगशाला होती है जिसमें मानव अपना विषय स्वयं चुनता है और मानव रूपी शोधार्थी का गाइड अर्थात पथप्रदर्शक ईश्वर होते हैं जो मानवीय अथवा अमानवीय कर्मों के अनुसार मार्गदर्शन करते हुए विभिन्न उपाधियों से पुरस्कृत करते हैं। अर्थात दंड अथवा सम्मान से सम्मानित कर सुशोभित करते हैं। इसलिए शास्त्रों के अनुसार निर्धारित चौरासी लाख योनियों में जन्म अथवा मरण का चक्रव्यूह निरन्तर चलता रहता है।
इसी चक्रव्यूह में शोधकार्ता के लिए उसका अतीत एक समाचार पत्र जैसा होता है जिसे पढ़ने के उपरान्त रद्दी की टोकरी अथवा कबाड़ में फैंकना अनिवार्य होता है। चूॅंकि इसको फैंक देना अत्यंत लाभदायक होता है। अन्यथा यह समय को ही नहीं बल्कि वर्तमान एवं भविष्य दोनों को भी क्षतिग्रस्त कर देता है और उक्त क्षतिपूर्ति का कोई प्राकृतिक अथवा कृत्रिम उपचार भी नहीं है। इसलिए वर्तमान और भविष्य का सुख प्राप्त करने के लिए कष्टदायक अतीत को बुरा स्वप्न समझकर शीघ्र अतिशीघ्र भूल जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि भविष्य को संवरने एवं संवारने के लिए वर्तमान एक उत्कृष्ट उत्तर पुस्तिका है जिसके सुखद और सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने हेतु ध्यान से लिखें। चूॅंकि उत्तर पुस्तिका को ईश्वर स्वयं जॉंचते व परखते हैं और अंक भी गुणवत्ता के आधार पर ही देते हैं। अतः जो भी करें सोच समझकर करें अर्थात सर्वप्रथम उसे सुनें, उसके पश्चात उसे देखें और तत्पश्चात उसे ध्यानपूर्वक लिखें। चूॅंकि जो बोया जाएगा अंततः वही काटा जाएगा। सम्माननीयों जय हिन्द