मृत्यु अटल है। परन्तु मुझे समझाया जा रहा है कि मैं जीना सीखूं। समझाने वालों ने समझाते-समझाते मेरे आत्मविश्वास पर कुठाराघात किया और मेरी बीवी बच्चों को मुझसे अलग कर दिया। यही नहीं बल्कि न्यायिक गतिविधियों के लिए भी मुझे रोका गया। जिसमें अनेक बाधाएं डाली गईं। मेरे बेटे को उकसाया गया कि वह मुझे माननीय न्यायालय में याचिका दाखिल करने से रोके। जिसके पीछे का रहस्यमय अभिप्राय यह था कि मैं सदैव पागल बना रहूं और सत्य कभी सार्वजनिक न हो सके। क्योंकि सत्य कड़वा होता है और कड़वे सच की कड़वाहट ऊचे से ऊंचे पद और प्रतिष्ठा के बाल की खाल उधेड़ देती है।
जबकि मुझे ब्रह्मज्ञान प्राप्त है कि जो भी प्राणी मृत्युलोक में पैदा हुआ है उसे प्रकृति जीना सिखा ही देती है। यहां तक कि कुछ जानवरों के बच्चे पैदा होते ही तैरने लगते हैं। क्योंकि वह जन्मजात ही तैराक होते हैं। परन्तु पक्षियों के बच्चों को उड़ान भरने में समय लगता है। ऐसे ही मानव जीवन को भी चलने से पहले रेंगना पड़ता है और रेंगने के उपरांत वह समय आने पर स्वतः ही चलने लगता है। इसे प्रकृति कहते हैं और प्रकृति ही सत्यम शिवम सुंदरम अर्थात ईश्वर है।
परन्तु मैं तो ब्रह्मज्ञान से भी आगे का सीखना चाहता हूॅं जिसे प्रत्येक मानव को सीखना चाहिए। अर्थात मेरे सहित प्रत्येक मानव को जीने के बिल्कुल विपरीत मरना सीखना चाहिए। क्योंकि हमें मरना बिल्कुल नहीं आता। जबकि मृत्यु किसी भी पल किसी का भी दरवाजा खटखटा सकती है। जिसे कोई रोक भी नहीं सकता और पल में प्रलय हो जाती है। जिसके लिए सम्पूर्ण मानव जीवन को जागरूकता के आधार पर हर क्षण मरने के लिए ऐसे तैयार रहना चाहिए जैसे उसे अगले ही क्षण मरना है। प्रत्येक मानव का इस ओर ध्यानाकर्षित होना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। ताकि वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो सके और धर्मराज के समक्ष निडरतापूर्वक उपस्थित होने पर गर्व से सिर उठा कर कह सके कि जिस कार्य के लिए उसे मृत्युलोक में भेजा गया था वह उसे सफलतापूर्वक संपन्न कर लौटा है।
जिसके लिए मानव को भयमुक्त होकर स्वयं से प्रश्न पूछने चाहिए कि क्या उसने अपने मौलिक कर्तव्यों को पूरा कर लिया है? क्या उसने प्रकृति को संतुलित रखते हुए पर्यावरण में अपना योगदान दिया है? क्या वह अपनी सांसारिक इच्छाओं से तृप्त हो चुका है? क्या उसका साहित्यिक कार्य सम्पूर्ण हो गया है? क्या उसने अपने पारिवारिक दायित्वों को पूरा कर लिया है? क्या उसने अपनी इच्छाओं पर नियंत्रित करते हुए विजयश्री प्राप्त कर ली है? क्या उसने अपने उद्देश्य की पूर्ति कर ली है? क्या वह मरने के लिए हृदय तल से तैयार खड़ा है? क्या उसे मरने का दुःख तो नहीं हो रहा है? क्या उसे उसका सशक्त परिवार खुशी से विदा करेगा? क्या उसकी पत्नी या पति एवं बच्चे उसका दिल से त्याग करेंगे? जिससे अमर आत्मा प्रसन्नतापूर्वक परमधाम में पहुंच कर ईश्वर में समा सके।
उपरोक्त प्रश्नों के प्रत्यक्ष उत्तर जिस मानव ने भी पा लिए उसको मोक्ष प्राप्त होना सुनिश्चित है। क्योंकि हर पल मौत का सिमरन करने वाला मानव जीवित ही कहां होता है? अर्थात जो जीवित ही नहीं वह मरेगा क्या और उसे मारेगा कौन? इसी संदर्भ में द्वापर युग में पांडवों की माताश्री कुंती ने श्रीकृष्ण जी से आग्रह किया था कि उन्हें प्रायः कष्टों में रखना ताकि सदैव आपका आशीर्वाद हमें प्राप्त होता रहे। संभवतः मुझे भी ईश्वर ने अब तक कष्टों में इसलिए रखा है कि मुझे ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त होता रहे। जिनके आशीर्वाद से मुझे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त होने की सुगंध आ रही है। जिसके उपरांत पागल कहने वालों को भी ईश्वर ही सद्बुद्धि देंगे।
परन्तु सौभाग्यवश मेरा सौभाग्य औरों से पूर्णतः भिन्न ही रहा है। क्योंकि कल तक समाज मुझे गरीब कहते नहीं थकता था और आज वही समाज इस बात से परेशान है कि मेरी चल अचल संपत्ति कौन सम्भालेगा? हालांकि मेरा भरा पूरा परिवार है। मेरे बीवी बच्चे हैं। इसके अलावा कल तक मुझे नकारात्मक लेखक दर्शाने वाले आज गर्व से सकारात्मक लेखक कहते नहीं थकते। विडंबना यह भी है कि मुझे राष्ट्रद्रोही कहने वाले अब सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व मानते हुए राष्ट्रभक्त की संज्ञा देने लगे हैं। परन्तु उक्त कठिन यात्रा में मेरे तत्कालीन क्रूर विभागीय अधिकारियों ने मेरा आठ बार मानसिक परीक्षण करवा डाला और डॉक्टरों द्वारा घोषित तपेदिक रोग निवारण हेतु माननीय न्यायालय ने भी मेरा मानसिक उपचार करवाने का आदेश पारित कर दिया था। जो वर्तमान समय में एक उपलब्धि ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय दुखद कीर्तिमान है।
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त दुखद कीर्तिमान पर माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय समसमायिक विद्वान न्यायाधीश गंभीरतापूर्वक विचार विमर्श कर रहे हैं। जो मेरी कठिन लम्बी यात्रा के हर बिंदु की गहन जांच कर रहे हैं। वह जानना चाहते हैं कि संविधान के होते हुए संवैधानिक त्रुटियां कहां-कहां और कैसे-कैसे हुईं? जिसपर मुझे आशा है कि शीघ्र ही निर्णय आएगा। जिसमें मुझे साक्षात ईश्वरीय दर्शन होंगे और समझाने वाले पढ़े लिखे मूर्खों से मुक्ति भी मिलेगी। आशा यह भी है कि ईश्वरीय कृपा से मेरे उजड़े हुआ घर में भी पुनः बहार आ जाएगी और मैं शनिदेव जी को प्रणाम करते गीत गुनगुनाऊंगा "बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है"। जय हिन्द। सम्माननीयों ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।