बलात्कार एवं हत्या जैसे अपराधियों का अपराध के पीछे का आपराधिक दृष्टिकोण क्या होता है? इसके संबंधित अपने अल्प ज्ञान के कारण मैं कुछ नहीं जानता हूॅं। परन्तु इतना अवश्य जानता हूॅं कि उनमें सभ्यता, संस्कृति और मानवीयता का उच्च स्तरीय अभाव होता है। उनके पालन-पोषण में संस्कारों की पूर्ति हेतु उनके माताश्री और पिताश्री ने अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन नहीं किया होता। और तो और उनके गुरुकुल के गुरुओं ने भी उनके मन मस्तिष्क में शिक्षा का ज्ञान भरने में कहीं न कहीं भारी चूक की होती है। जिसके फलस्वरूप सभ्य समाज में क्रूरतम से क्रूरतम अपराध घटित हो रहे हैं। जिसके लिए दंडित मात्र एक आपराधी को किया जाता है और शेष दोषियों से ऑंखें मूंद ली जाती हैं। जो अनुचित ही नहीं बल्कि अन्यायपूर्ण व्यवहार है। जिसके कारण साहित्य के क्षेत्र में नयापन नहीं आ रहा है और पुराने घिसेपिटे विचार सामने आते हैं। जो सरकारी साहित्यिक संस्थाओं और साहित्यकारों में नूरा कुश्ती से अधिक कुछ नहीं होता।
हालांकि सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा शिक्षा नीति को परिवर्तित कर दिया गया है। किंतु उसके बावजूद साहित्य अकादमियों के मुख्य सम्पादक लार्ड मैकाले की शिक्षा नितियों को ही प्राथमिकता देते देखे जा रहे हैं। क्योंकि साहित्यिक संगोष्ठियों में सुनने को वह नहीं मिलता जो माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी चाहते हैं। उनकी चाहत को तिलांजलि देते हुए तत्कालीन प्रोफेसर से लेकर कतिपय समसामयिक प्रोफेसरों के लेखन में मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा परिवर्तित शिक्षा नीति का प्रतिबिंब दिखाई नहीं देता। चूंकि साहित्य अकादमियों के मुख्य सम्पादक लार्ड मैकाले की शिक्षा नितियों को ही नहीं बल्कि कांग्रेस नीत को प्राथमिकता देते हुए सत्य को सत्य मानते हुए देशहित में लिखी रचनाओं को प्रकाशित करने से स्पष्ट मना कर देते हैं। जबकि सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अपने संबोधन में प्रायः असत्य और अपराध का कविता, ग़ज़ल और आलेखों के माध्यम से विरोध करने का आह्वान करते हैं।
परन्तु दुर्भाग्यवश समसामयिक सरकारी संस्थाओं सहित पत्र पत्रिकाओं के मुख्य सम्पादकों द्वारा लार्ड मैकाले की शिक्षा नितियों के अन्तर्गत पुराने नियमों का मौखिक हवाला देकर प्रकाशित/प्रसारित करने से मना कर देते हैं। यही नहीं ऐसा लिखने वालों को नकारात्मक लेखक की संज्ञा देकर अपमानित भी करते हैं। जबकि उक्त अपमान पीड़ित लेखक का न होकर वर्तमान सरकार, देश और देश के सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का है। जिसके लिए उपरोक्त सरकारी अधिकारी दंड के पात्र हैं।
विडम्बना यह भी है कि उक्त अधिकारी उक्त कानून के दर्शन भी नहीं करवाते। जिससे स्पष्ट हो सके कि सत्य लिखना या सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर करना नकारात्मकता की श्रेणी में आता है और उसे प्रकाशित/प्रसारित करने वाले सम्पादकों को राजकीय दंड से दंडित किया जा सकता है। यदि ऐसा कानून है तो सम्पादकों द्वारा लार्ड मैकाले के उक्त कानून की प्रतिलिपि सार्वजनिक करनी चाहिए। ताकि उसे माननीय उच्च/उच्चतम न्यायालय में विधिक चुनौती देकर हम प्रतिष्ठित क्रांतिकारी लेखक अपना मौलिक कर्तव्य पूरा कर सकें।
ऐसी परिस्थितियों में स्वाभाविक हैं कि साहित्य अकादमियों एवं संगठनों के संचालकों द्वारा आयोजित संगोष्ठियों में सभ्यता और संस्कृति के मानदंडों को परिवर्तित शिक्षा नीति के अंतर्गत समसामयिक मानदंड स्थापित करने चाहिए। जिन मानदंडों में साहित्य अकादमियों एवं संगठन संचालकों के क्षेत्र में घटित हुए अल्प से अल्प आपराधिक मामलों में साहित्यिक सचिवों एवं संगठन संचालकों की नैतिकता एवं मौलिक कर्तव्यों के आधार पर "पूछताछ" की जा सके। ताकि देश उन्नति करे और भारतीय सभ्यता और संस्कृति चारों दिशाओं में विस्तार कर सके।
चूंकि साहित्य और संस्कृति को समृद्ध इसी आधार पर किया जाता है कि साहित्यिक गतिविधियों द्वारा सरलता से समाजिक सुधार किए जा सकें। जिसके आधार पर साहित्यिक व्यक्तित्वों का साहित्यिक मौलिक कर्तव्य बनता है कि वे अपने उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक निभाएं। जिसके चलते समाज में असामाजिक तत्वों का भी हृदय परिवर्तित हो जाए और वो मानवीय मूल्यों पर अग्रसर हो सकें। जिससे वे अल्पतम से अल्पतम व क्रूरतम से क्रूरतम अपराध से बच सकें।
इन्हीं साहित्यिक प्रज्वलित मानवीय गुणों के आधार पर साहित्यकारों, लेखकों और कवियों को साहित्य अकादमी पुरस्कारों, पद्मश्री पुरस्कारों, ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारत रत्न पुरस्कारों एवं विश्व स्तर पर नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है। जिसके आलौकिक प्रकाश से प्रकाशमान होकर मानवता का उद्धार हो सके। इसी उद्देश्यपूर्ति हेतु स्वीडन के महान रसायनविद तथा इंजीनियर अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में प्रत्येक वर्ष उनकी पुण्यतिथि 10 दिसम्बर को नोबेल फाउंडेशन द्वारा विश्व के असाधारण योग्यता से परिपूर्ण विशिष्ट व्यक्तित्वों को "नोबेल पुरस्कार" दिया जाता है।
परन्तु दुर्भाग्यवश उपरोक्त पुरस्कार विजेता अपने मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन नहीं करते। जिसके कारण उनके क्षेत्राधिकार में आपराधिक मनोवृत्ति बढ़ जाती है और क्रूरतम से क्रूरतम अपराध घटित हो जाते हैं। जिसमें उपरोक्त पुरस्कार विजेता अपने मौलिक कर्तव्यों के हनन के आधार पर कहीं न कहीं दोषी अवश्य होते हैं। जिसके लिए जांच कमेटी द्वारा इनकी भी जांच अनिवार्य होनी चाहिए। जिसका परिवर्तित साहित्यिक समसामयिक मानदंडों में उल्लेख होना चाहिए। जिसके आधार पर साहित्य और संस्कृति के गिरते स्तर पर जांच कमेटी द्वारा उपरोक्त पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को दोषी ठहराते हुए उनकी गहन पूछताछ करनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि जब तक वरिष्ठ नागरिकों, साहित्यिक अकादमियों/साहित्यिक संस्थाओं और लेखकों पर मौलिक कर्तव्यों का उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किया जाएगा। तब तक बलात्कारियों और हत्यारों द्वारा आपराधिक रोकथाम नहीं होगी। इसके अलावा कतिपय चाटुकार एवं चापलूस लेखकों द्वारा मंचासीन प्रतियोगिता के आयोजन से बचते बचाते आयोजकों के पानी भरने के पारितोषिक का भी आनंद लेते हुए देश का सत्यानाश करते रहेंगे।
अतः ऐसे सत्यानाशी चापलूस लेखकों, संपादकों इत्यादि से देश को बचाने हेतु देश के महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, भारत के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी एवं देश के सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से मेरा विनम्रतापूर्वक यक्ष प्रश्न यह है कि साहित्य और संस्कृति की हत्या और बलात्कार करने वालों पर अंकुश लगाने हेतु साहित्य और संस्कृति के जघन्य साहित्यिक बलात्कारियों और हत्यारों को फांसी पर कब लटकाया जाएगा?