मन में बसे अथाह पवित्र प्रेम के प्रकटीकरण का माध्यम चुम्बन बनता है जो प्रत्येक संबंध की पवित्रता को बनाए रखने में सक्षम होता है। चूॅंकि चुम्बन का क्षेत्रफल माता-पिता, भाई-बहन, बेटी बेटे, सगे-संबंधी, मित्र-सहेली इत्यादि से लेकर पति-पत्नी तक फैला होता है। क्योंकि प्रेम की बंसी एक ओर जीवन का और दूसरी ओर सृष्टि का मूल आधार होती है। यही कारण है कि कान्हा जी की बंसी श्रीकृष्ण जी के सुदर्शनचक्र पर सदैव भारी पड़ी है।
इसमें भी दो राय नहीं है कि चुम्बन वासनामुक अथवा वासनायुक्त दोनों ही दिशाओं अथवा दशाओं में अपना अद्वितीय महत्व रखता है। चूॅंकि सर्वविदित है कि सृष्टि के सृजन का शुभारम्भ भी चुम्बन से ही होता है और यह चुम्बन दाम्पत्य जीवन में बंधे पति-पत्नी को एक सूत्र में बांध रखने में भी सहायक सिद्ध होता है। सत्यता तो यह भी है कि चुम्बन दाम्पत्य जीवन का केन्द्र और दोनों के आकर्षण का केंद्र बिंदु भी होता है जो चुम्बक का दायित्व निभाता है।
उल्लेखनीय यह भी है कि चुम्बन की यही चुम्बकीय शक्ति सर्वप्रथम पति-पत्नी को दो से तीन करती है और उनके घर ऑंगन में नवजात शिशु की किलकारियॉं गूॅजने लगती हैं। जिसे वंश का फलना-फूलना कहते हैं और उक्त वंशावली की किलकारियॉं तब तक गूॅजती रहती हैं जब तक दम्पत्ति उक्त "उत्पत्ति" पर कृत्रिम प्रसाधनों से अंकुश नहीं लगा देते हैं। उपरोक्त उपलब्धियों में से प्रथम उपलब्धि को परिवार और द्वितीय उपलब्धि को परिवार नियोजन की संज्ञा दी गई है।
कहने का अभिप्राय यह है कि "चुम्बन और चुम्बन की चुम्बकीय शक्ति" से ही युगों-युगों से परिवार की उत्पत्ति, उत्थान और विकास का सुखद आरम्भ होता आया है और उसे प्रेम पूर्वक "प्रेम के बंधन" में कुशलतापूर्वक बॉंध कर सदैव प्रगतिशील आलौकिक पथ पर जीवनभर अग्रसर रखती है।
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर