संवैधानिक न्यायिक तुला में मेरी आत्मा को परमात्मा के संग तुलते हुए इकासठ वर्ष हो चुके हैं और इन इकासठ वर्षों में मैंने जो किया, सहा और पाया उसकी रूपरेखा अर्थात बहीखाता अब परमात्मा को सौंपने का समय आ गया है। यूॅं भी मृत्युलोक में कब तक रहना है? अर्थात कब तक दंड भोगना है? अर्थात कब तक परमानन्द से वंचित रहना है? अर्थात एक न एक दिन तो यहॉं से आलौकिक परलोक में जाना निश्चित ही है।
विशेषकर जिस जहॉं के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तम्भ के नीचे देवनागरी लिपि में "सत्यमेव जयते" लिख तो दिया जाता है। परन्तु सौभाग्यवश उसे एक ओर न्यायिक देवी के समक्ष सिद्ध नहीं किया जाता और दुर्भाग्यवश दूसरी ओर "झूठमेव जयते" विजयी हो जाता है, जिसके चक्रव्यूह से भारत के चारों स्तंभ बुरी तरह प्रभावित हैं और नागरिक स्वामी होते हुए भी दासत्व जीवन व्यतीत करने पर विवश हो रहे हैं। जो न्याय की देवी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
यही कारण हैं कि भारतीय नागरिकों द्वारा भारत के प्रथम व्यक्ति माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी को भेजी गई और माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा देश की लोकप्रिय लोकतांत्रिक सरकार को प्रेषित की गई ज्वलंत समस्याओं को कोई भी अधिकारी निष्ठापूर्वक सुलझा नहीं रहा। उल्लेखनीय है कि भारतीय नागरिकों के पास इससे बड़ा कोई विकल्प भी नहीं है। तो ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक है कि स्वामी नागरिक "स्वामित्व" का बोझ उठाए जाऍं तो जाऍं कहॉं?
उल्लेखनीय है झूठ की पकड़ इतनी सशक्त है कि लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी मानी जाने वाली न्यायपालिका की न्यायालयों के न्यायाधीश भी झूठ से अछूते नहीं हैं और वह भी सत्य के दामन से कोसों दूर बैठे हैं। हालॉंकि उन्हें न्यायमूर्ति जैसी अति सम्मानित संज्ञा दी गई है जिस संज्ञा का उल्लेख करते हुए अकेले में वह स्वयं भी खींजते होंगे। जबकि न्यायमूर्तियों सहित भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री टी.एस. ठाकुर जी को एक सभा में स्वयं मैंने समाचारों के माध्यम से रोते हुए देखा था और विश्वास किया था कि अब मात्र मुझे ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय नागरिकों को न्याय अवश्य मिलेगा। परन्तु माननीय न्यायमूर्तियों सहित मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री टी.एस. ठाकुर जी के ऑंसू भी "घड़ियाली ऑंसू" ही निकले और न्यायिक देवी ने ऑंखें नहीं खोलीं।
हालॉंकि सच यह भी है कि माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में कार्यरत उन्हीं के छोटे भाई माननीय विद्वान न्यायमूर्ति श्री धीरज सिंह ठाकुर जी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मेरी अपील संख्या एलपीए अंक 139/2020 पर नोटिस जारी कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया, जिससे न मात्र सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) विभाग सकते में आ गया बल्कि माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय सहित उसके तत्कालीन माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी के भी गले की फॉंस बन गया था। जिन्होंने अपने गले की फॉंस पुनः एकल पीठ के माननीय विद्वान न्यायाधीशों के गले की फॉंस बनाते हुए 31मार्च 2022 में एलपीए अंक 139/2020 को रद्द कर छुटकारा पा लिया था।
तब से लेकर अब तक माननीय न्यायालय की एकल पीठ के विभिन्न माननीय विद्वान न्यायाधीश मेरी विभिन्न याचिकाओं पर अनेक आदेश पारित कर चुके हैं जिनमें सर्वप्रथम डव्लयू.पी.(सी) अंक 1647/2022 में अब तक सात आदेश पारित किए जा चुके हैं, उनमें से सर्वप्रथम माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री विनोद चटर्जी कौल जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री जावेद इकबाल वानी जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री राहुल भारती जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी ने और माननीय न्यायमूर्ति श्री रजनीश ओसवाल जी ने क्रमशः 01: 02: 02: 01:01 आदेश पारित किए हैं। इसी प्रकार डव्लयू.पी.(सी) अंक 1719/2022 में छः आदेश पारित हुए हैं, जिसमें माननीय न्यायमूर्ति श्री विनोद चटर्जी कौल जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री जावेद इकबाल वानी जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री राहुल भारती जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी ने और माननीय न्यायमूर्ति श्री रजनीश ओसवाल जी ने क्रमशः 01: 02: 01: 01:01 आदेश पारित किए हैं। यूॅं ही डव्लयू.पी.(सी) अंक 1757/2022 में भी पॉंच आदेश पारित हुए हैं जिसमें माननीय न्यायमूर्ति श्री विनोद चटर्जी कौल जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री जावेद इकबाल वानी जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री राहुल भारती जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी ने और माननीय न्यायमूर्ति श्री रजनीश ओसवाल जी ने क्रमशः 01: 01: 01: 01:01 आदेश पारित किए हैं। इसके उपरान्त डव्लयू.पी.(सी) अंक 1847/2022 में छः आदेश पारित हुए हैं जिसमें माननीय न्यायमूर्ति श्री संजय धर जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्रीमती सिंधु शर्मा जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री राहुल भारती जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी ने और माननीय न्यायमूर्ति श्री रजनीश ओसवाल जी ने क्रमशः 02: 01: 01: 01:01 आदेश पारित किए हैं। ऐसे ही डव्लयू.पी.(सी) अंक 1848/2022 में भी छः आदेश पारित हुए हैं जिसमें माननीय न्यायमूर्ति श्री संजय धर जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री वसीम सादिक नरगाल जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री राहुल भारती जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी ने और माननीय न्यायमूर्ति श्री रजनीश ओसवाल जी ने क्रमशः 02: 01: 01: 01:01 आदेश पारित किए हैं। इसके अतिरिक्त डव्लयू.पी.(सी) अंक 2068/2022 में आठों याचिकाओं को एक साथ जोड़ दिया अर्थात क्लब कर दिया गया था और इसमें अब तक अर्थात 29 नवंबर 2023 तक 15 आदेश पारित हो चुके हैं जिसमें माननीय न्यायमूर्ति श्री संजय धर जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री राहुल भारती जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्रीमती सिंधु शर्मा जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री वसीम सादिक नरगाल जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी ने, माननीय विद्वान रजिस्ट्रार जूडिशियल जी ने और माननीय न्यायमूर्ति श्री रजनीश ओसवाल जी ने क्रमशः 01: 02: 05: 01:03: 02: 01 आदेश पारित किए हैं।
इसी क्रमानुसार एक नए अनुभव अनुसार डव्लयू.पी.(सी) अंक 2087/2022 को माननीय न्यायमूर्ति श्री राहुल भारती जी ने निर्णय हेतु सुरक्षित कर लिया था। परन्तु कई महीनों उपरांत उन्होंने उसे शेष याचिकाओं के साथ विभाग को उत्तर देने एवं रजिस्ट्री को क्लब करने हेतु आदेश पारित कर दिया था जिसमें उन्होंने तीन आदेश पारित किए हैं और आठवीं याचिका डव्लयू.पी.(सी) अंक 2088/2022 में भी सात आदेश पारित हो चुके हैं, जिसमें माननीय न्यायमूर्ति श्री राहुल भारती जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री विनोद चटर्जी कौल जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री वसीम सादिक नरगाल जी ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी ने और माननीय न्यायमूर्ति श्री रजनीश ओसवाल जी ने क्रमशः 03: 01: 01: 01:01 आदेश पारित किए हैं। अर्थात 04 अगस्त 2022 को प्रथम नोटिस जारी करने से लेकर अब तक माननीय न्यायालय की विभिन्न एकल पीठ द्वारा 56 आदेश पारित हो चुके हैं।
हालॉंकि इसके पहले एकल पीठ की याचिका डव्लयू.पी.(सी) अंक 1340/2020 में माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री राजेश बिंदल जी 16 पृष्ठों का एक आदेश पारित कर चुके हैं। उसके उपरॉंत पुनर्विचार याचिका अंक आर.पी. अंक 31/2020 में वह 02 आदेश पारित कर चुके हैं, जिसके बाद एलपीए अंक 139/2020 का शुभारम्भ होता है, जिसमें 08 आदेश पारित किए गए हैं, जिसका श्रीगणेश माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धीरज सिंह ठाकुर जी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में हुआ था और अंत माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में हुआ था, जिसमें सर्वप्रथम माननीय विद्वान न्यायमूर्ति श्री धीरज सिंह ठाकुर जी एवं श्रीमती सिंधु शर्मा जी की खंडपीठ ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री धीरज सिंह ठाकुर जी एवं श्री जावेद इकबाल वानी जी की खंडपीठ ने, माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी एवं श्रीमती सिंधु शर्मा जी की खंडपीठ ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री ताशी रब्सतान एवं श्री जावेद इकबाल वानी जी की खंडपीठ ने, माननीय न्यायमूर्ति श्री धीरज सिंह ठाकुर जी एवं श्री पुनीत गुप्ता जी की खंडपीठ ने, माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी एवं श्री मोहन लाल जी की खंडपीठ ने और माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी एवं श्रीमती मोक्षा खजूरिया काजमी जी की खंडपीठ ने क्रमशः 01: 01: 02: 01: 01: 01: 01 आदेश पारित किए हैं और माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी एवं श्रीमती मोक्षा खजूरिया काजमी जी की खंडपीठ के आदेश में कमियों को दूर करने हेतु पुनर्विचार याचिका अंक 81/2022 में भी 02 आदेश पारित किए जा चुके हैं। परन्तु सौभाग्यवश अभी तक उक्त याचिका माननीय न्यायालय में विचाराधीन है। देखना शेष है कि न्यायिक देवी अपनी ऑंखों पर बंधी पट्टी को खोलकर कब असमतल तुला को समतल करती है।
परन्तु दुर्भाग्यवश मेरे गले की फॉंस अभी तक मेरे गले में ही अटकी हुई है अर्थात मेरी मानसिक दिव्यांगता पेंशन ज्यों की त्यों चल रही है और प्रत्येक माह मुझे निरापराध अपमानित करती है, जबकि सरकार द्वारा यह भी मान लिया गया है कि मुझे विभागीय तत्कालीन अधिकारियों द्वारा 05-12-1992 में स्थाई करना था। परन्तु उन तत्कालीन अधिकारियों ने न तो मुझे स्थाई किया था और ना ही उन्होंने मेरी सेवा पुस्तिका में स्थाई नहीं करने का कोई कारण ही उल्लेखित किया हुआ है। जिनके अपराध का दंड मुझे और मेरे परिवार को आज भी दिया जा रहा है और माननीय न्यायालय के उपरोक्त वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश उसका सुधार तक नहीं कर पा रहे हैं। जिसके दंडस्वरूप मेरी दिव्यांगता अर्थात पागल की पेंशन अभी भी जारी है और माननीय न्यायालय को मेरी विद्वता का संज्ञान ही नहीं बल्कि प्रज्ञान होने के बावजूद निरंतर मेरा अपमान किया जा रहा है। ॐ शान्ति ॐ सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखक व राष्ट्रीय पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, आरएसएस का स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी, घर अंक 01,
वार्ड अंक 03, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जनपद जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।