भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक हेतु कानून समान होना चाहिए। भले ही वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो? भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। जिसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हिंदुओं के लिए कानून अलग और मुस्लिमों के लिए कानून अलग-अलग होंगे। अर्थात जब माननीय न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश न्याय करने लगेंगे तो निर्णय लिखने से पहले वे वादियों और प्रतिवादियों से उनके धर्म पूछेंगे? जिसके कारण एक भाई के भाग में मलाई और दूसरे के भाग्य में रसमलाई आएगी। जिसके कारण वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता बढ़ रही है और बढ़नी भी चाहिए। चूंकि हम सब भाई-भाई हैं और भाइयों में भेदभाव कैसा?
उल्लेखनीय है कि भारत में जब आपराधिक कानून एक हैं और वह सब पर समान रूप से लागू भी होते हैं। ऐसे में नागरिक कानून में धार्मिक बाधाएं क्यों हैं? क्यों वह धार्मिक मूल्यों से प्रभावित होते हैं और कब तक होते रहेंगे? प्रश्न स्वाभाविक और संवैधानिक हैं। जिनपर राष्ट्रीय विधिक चर्चाएं होनी आवश्यक हैं। जिसके लिए विधि आयोग द्वारा प्रश्न उठाना न्यायोचित है।
विचित्र व्यवहार है कि एक ओर हिन्दू भाई "हम दो हमारे दो" का राग आलाप रहा है और दूसरी ओर मुस्लिम भाई "हम दो और हमारे दो सौ" कहते हुए प्रसन्नतापूर्वक झूम रहा है। जिनके पास खड़े भारत के माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी और माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी कान खुजाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि समान नागरिक संहिता लागू नहीं है।
जिसके आधार पर अभिनंदन करते हुए जनसंख्या वृद्धि दर एक वर्ग की सिकुड़ जाएगी और दूसरे वर्ग की फैल जाएगी। जिसपर समय रहते अंकुश लगाना अनिवार्य है। अतः राष्ट्रहित में समान नागरिक संहिता लागू करवाना समय की मांग है। ॐ शांति ॐ