हिंदी भाषा को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए मां भारती प्रायः अग्रसर रही है। जिसमें किसी को भी किसी भी दृष्टिकोण से आपत्ति नहीं है। चूंकि हिंदी भाषा का आरंभ ही भारत से हुआ है और भारत सरकार का मौलिक कर्तव्य भी बनता है कि वह हिंदी का अंतरराष्ट्रीयकरण करते हुए सम्पूर्ण भारतीयों को गौरवान्वित करे। जैसे भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में चंद्रयान-3 को चंद्रमा की धरातल के दक्षिण ध्रुव पर उतार कर भारत को विश्व का पहला देश बनाकर इतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया है। जिसके लिए सम्पूर्ण भारत, भारतीय और भारतीयता सहित अंतरिक्ष वैज्ञानिक और वर्तमान सरकार अभिनंदन एवं शुभकामनाओं के पात्र हैं।
परन्तु इस कड़वे यथार्थ को भी झुठलाया नहीं जा सकता है कि मानव की मानवीय संवेदनाओं को उजागर करते हुए मानव तब तक आत्मनिर्भर नहीं हो सकता, जबतक कि वह स्वयं विधिक रूप से सशक्त नहीं हो जाता। सर्वविदित है कि विधिक सशक्तीकरण हेतु विधिक ज्ञान होना अति अनिवार्य है और उक्त विधिक ज्ञान को शब्दों द्वारा माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीश के समक्ष रखने हेतु सशक्त याचिका लेखन की आवश्यकता पड़ती है।
जिस याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता अपनी व्यथाओं को साक्ष्यों द्वारा माननीय न्यायाधीश को अवगत करवा सकें कि पीड़ितों की पीड़ाओं के आधार क्या हैं। जिन आधारभूत बिंदुओं पर माननीय विद्वान न्यायाधीश क्षणिक मूल्यांकन करते ही त्वरित कार्रवाई हेतु विवश हो जाएं। यह तभी संभव हो सकता है, जब सशक्त याचिका लेखन का प्रचलन आरम्भ हो सके। ध्यान रहे कि माननीय न्यायालय के माननीय कर्मठ विद्वान न्यायाधीश न्याय की गहरी मांग पर कठिन से कठिन न्यायिक परिस्थितियों एवं वास्तविकताओं से भरी प्रत्येक याचिका को देर सबेर सुनते अवश्य हैं और उसपर सशक्त विधिक कार्यवाही करते भी देखे जा रहे हैं। ऐसा लेखक अपने निजी अनुभव के आधार पर लिख रहा है। जिसके अंतर्गत ऐसा लिखना कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय माननीय न्यायालय के पास भारत राष्ट्र द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव मना लेने के उपरांत भी याचिकाकर्ताओं की याचना सुनने का पर्याप्त समय नहीं है। इसलिए माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों को अपनी समस्याओं से अवगत ही नहीं बल्कि संतुष्ट करने हेतु संक्षिप्त से भी संक्षिप्त याचिका की आवश्यकता होती है। जिन्हें सुनते ही माननीय विद्वान न्यायाधीश आरोपियों पर दंडात्मक कार्रवाई करने पर विवश हो जाएं। चूंकि कहानियां सुनने का प्रयोग कल्चरल अकादमियां तो कर सकतीं हैं। परन्तु माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीश कदापि नहीं करते हैं।
जबकि लेखकों का दुर्भाग्य यह है कि सशक्त "समस्या और याचिका" लेखन विधाओं को लेखन विधा ही नहीं माना जाता। जिसके आधार पर लेखक हिंदी भाषा में समस्या और याचिका लेखन पर ध्यान नहीं देते और कल्पना में खोए रहते हैं। संभवतः विद्वान लेखकों को कल्पनाओं में खोए रहने के कारण ही "पागल" की संज्ञा दी गई है। जिसके आधार बिंदु कोरी कल्पना है। मेरे शोध में भी पाया गया है कि विद्वान लेखक नपुंसकों की भांति सत्य से प्रायः दूरी बनाए रखते हैं और हर समय कल्पना में खोऐ रहते हैं। जिसके कारण अधिकांश विद्वान लेखक सीजोफ्रेनिया नामक बीमारी या अन्य मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। क्योंकि अधिकतर लेखकों में सत्य का सामना करने की शक्ति नहीं होती और कायर न होते हुए भी जीवनभर कायरता का जीवन व्यतीत करते हैं।
जिससे उभरने के लिए समस्या और याचिका लेखन एक मात्र समाधान है। क्योंकि किसी भी झूठे आरोप से मुक्ति पाने हेतु आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। उल्लेखनीय है कि आत्मविश्वास संवैधानिक ज्ञान से प्राप्त होता है और संवैधानिक ज्ञान याचिका लेखन के माध्यम से संभव है। जिसका सत्य यह भी है कि भारत राष्ट्र भारतीय लिखित संविधान से चलता है और संविधान नागरिकों के अधिकारों के लिए लिखा गया है। जिन्हें देश का स्वामी अर्थात मालिक माना गया है और उनके स्वामित्व अर्थात प्रभुत्व के अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार ने उनकी सेवा हेतु वैतनिक अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त कर रखे हैं। जो स्वामी के आदेश की पालना करते हैं। जिसका वचन संविधान ने प्रत्येक नागरिक को दे रखा है। जिसकी पुष्टि चारों ओर शेर की भांति चौकन्ने होने का प्रतीक "अशोक स्तम्भ" भी करता है। जिसके नीचे सत्यमेव जयते लिखा हुआ है। बस आवश्यकता तो सत्य को प्रस्तुत करने की मात्र कलात्मक याचिका लिखने की है। जो मात्र और मात्र याचिका लेखन से ही संभव है।
जिसके लिए साहित्य अकादमियों और सांस्कृतिक संस्थाओं को "समस्या और याचिका लेखन" जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक सैमिनार रखने की परम आवश्यकता है। क्योंकि उपरोक्त अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं एवं संगोष्ठियों के माध्यम से एक ओर साहित्यिक व्यक्तित्वों में निखार आएगा और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा फूलने व फलने लगेगी।
उल्लेखनीय है कि सर्वप्रथम हमारे माननीय विदेशी मंत्री के पद पर आसीन रहते स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 1977 की संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी भाषा में संबोधित कर एक ओर विश्व को आश्चर्यचकित किया था और दूसरी ओर भारत को गौरवान्वित अनुभव कराया था। यह भी उल्लेखनीय है उन्होंने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में भी हिंदी भाषा का वैश्विक बिगुल बजाते हुए 31 जनवरी 2004 को वैश्विक सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर अपने संबोधन में कहा था कि "हमें भारत में विरासत के तौर पर एक महान सभ्यता मिली है, जिसका जीवन मंत्र 'शांति' और 'भाईचारा' रहा है। उल्लेखनीय है कि विश्व स्तर पर शांति, मित्रता और सहयोग का दायित्व निभाने वाले सर्वश्रेष्ठ लेखनी के धनी सर्वश्रेष्ठ लेखक स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी भी मानसिक स्वास्थ्य के दंश की पीड़ा के कारण ही पंचतत्वों में विलीन हुए थे। जिनकी स्मृति हेतु समस्या और याचिका लेखन पर भी संगोष्ठियों होना अनिवार्य हैं। जो हिंदी के साथ साथ क्रांतिकारियों के लिए न्याय की मांग भी करते थे।
अतः माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व वाले केंद्र शासित प्रदेश से आशा करता हूॅं कि जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के कर्मठ एवं सशक्त विद्वान प्रशासनिक अधिकारी आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी उपरोक्त वर्णित विषय पर आकर्षित होंगे और हिंदी भाषा एवं हिन्दी के लेखकों के व्यक्तित्वों को निखारने एवं अंतरराष्ट्रीय समृद्धि हेतु दीप प्रज्जवलित कर शीघ्र ही "समस्या और याचिका लेखन" का बिगुल बजाते हुए जम्मू से ही शुभारम्भ करेंगे। जिससे लेखकों का भविष्य निस्संदेह उज्ज्वल और गौरवान्वित होगा। जय हिन्द। सम्माननीयों ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।