ओडिशा के बालासोर में कल शाम तीन ट्रेनों अर्थात रेलगाड़ियों अर्थात लौह पथ गामिनियों में भीषण टक्कर के कारण हुई दुर्घटना में सैंकड़ों अनमोल जीवन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। जिनमें बहुत से बच्चे, बूढ़े और युवा तो सोए हुए ही इस भ्रष्ट व्यवस्था के कारण दूसरी दुनिया में पहुंच गए। जिसे सदी की सबसे भीषण त्रासदी कहना अतिश्योक्ति नहीं है।
हालांकि उपरोक्त भीषण त्रासदी को भारत सरकार के रेल मंत्रालय ने संभावित परिचालन विफलता पर उठे गंभीर प्रश्नों की गहन जांच के आदेश दे दिए हैं। परन्तु सत्य यह भी है कि वर्तमान सरकारी एवं निजी व्यवस्था मरने वालों से अधिक भ्रष्टाचारियों को बचाने में सहायता करती है। भ्रष्टाचारियों का बचाव करने बाले बिचौलियों को उक्त शब्दों जैसे "कि मरने वाले जीवित तो नहीं होंगे" का प्रयोग करते हुए उन्हें लज्जा भी नहीं आती। ऐसे बिचौलिए को भारतीय लोकतंत्र के चारों सशक्त स्तंभों अर्थात विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता को दीमक की भांति खोखला करते हुए आवारा कुत्तों की भांति चारों ओर देखा जा सकता है।
जो चोरों, बेइमानों और धोखेबाजी में संलिप्त लोगों का बहिष्कार करने के स्थान पर आवेदकों को समझाने आ जाते हैं। यही नहीं बल्कि अन्याय के विरुद्ध अपनी ध्वनि बुलंद करने वालों का मनोबल गिराने हेतु बताया जाता है कि माननीय न्यायालय में याचिका दायर करने के उपरांत भी उन्हें न्याय प्राप्त नहीं होगा। जिसके आधार पर विसलब्लोअर अर्थात मुखबिर अर्थात सूचक की प्राथमिक सूचना रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की जाती। जबकि भारत की माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी अपने महत्वपूर्ण आदेशों में स्पष्ट कहा हुआ है कि विसलब्लोअर अर्थात मुखबिर अर्थात सूचक को विभिन्न रूपों में प्रताड़ित न किया जाए। परन्तु उसके बावजूद सूचकों को पुलिस के कनिष्ठ ही नहीं बल्कि वरिष्ठ अधिकारी भी प्रताड़ित करते देखे जा रहे हैं। सत्य यह भी है कि पुलिस प्रशासन ही नहीं बल्कि भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी भी अपने ही वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह करने के लिए झूठी जानकारियां देते हुए पकड़े जा सकते हैं। जबकि उन्हें अपने पीड़ित नागरिक के प्रति मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए निवेदकों के मौलिक अधिकारों के प्रति संवेदनाओं की पूर्ति करनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि एक ओर हमारा देश विकास की ओर बढ़ते हुए आजादी के अमृत महोत्सव का आनन्द उठा रहा है और दूसरी ओर देश की निडर माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी अपने संबोधन में बार बार न्यायिक चिंताओं पर बहुमूल्य विचार प्रकट कर रही हैं। जिसमें वे स्पष्ट रूप से भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी से अशक्त नागरिकों के लिए सरल भाषा में निष्पक्ष न्याय की मांग कर रही हैं। जिनके प्रतिउत्तर में उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी भी भारतीय नागरिकों को उनके घर पर न्याय देने के प्रयास कर रहे हैं। परन्तु भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी सशक्त एवं गहरी हो चुकी हैं कि उन्हें आजादी का अमृत महोत्सव भी उखाड़ने में अक्षम प्रमाणित हो रहा है।
जिसमें एक अत्यंत कड़वा सत्य यह भी है कि देश के कलमकार, रचनाकार और साहित्यकार स्वातंत्र्योत्तर भारतीय सभ्यता, संस्कृति और साहित्य के सामाजिक परिवेश अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर सत्य लिखने से कतराते हैं। यही नहीं वे सच का सामना करने से अधिक भ्रष्टाचार में लिप्त होना लाभदायक मानते हैं। क्योंकि वह भ्रष्टाचार के घोड़े पर सवार होकर विभिन्न "पुरस्कारों" से सम्मानित भी हो जाते हैं और उन पुरस्कारों पर निःसंदेह गौरवान्वित भी अनुभव करते हैं। क्योंकि वर्तमान निंदनीय प्रथा के अंतर्गत "सत्य और भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान" पर चलने वालों को सामाज ही नहीं बल्कि माननीय न्यायालय भी पागल की संज्ञा देकर अपमानित कर रही है। जिसे साक्ष्यों के आधार पर लेखक सिद्ध करने में सक्षम है। जो राष्ट्रहित में न होते हुए राष्ट्रीय कलंकित चरित्र चित्रण का अद्वितीय, असाधारण, अकल्पनीय एवं अविश्वसनीय प्रमाण है।
अतः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी उपरोक्त आलेख के माध्यम से विनम्र आग्रह है कि लोकतांत्रिक चारों सशक्त स्तंभों से भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाप्ति हेतु विशेष पग उठाए जाएं। साहसी एवं निडर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से भी विनम्र आग्रह है कि यदि वास्तव में वे मृतकों और मृतकों के परिजनों से संवेदना रखते हैं तो देश के चारों लोकतांत्रिक स्तंभों में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त एवं राम राज्य स्थापित कर अपने चुनावी घोषणापत्र की वचनबद्धता सिद्ध करें। ताकि चारों ओर संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों और मौलिक अधिकारों की ध्वनि का शंखनाद हो सके। जिसके आधार पर देश भर में "ओडिशा ट्रेन दुर्घटना" जैसी अन्य दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटनाएं जन्म न ले सकें और आपके नेतृत्व में सदैव तिरंगा ऊंचा लहराता रहे। जिसके लिए उक्त आलेख के माध्यम से ही माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी से भी विनम्र आग्रह है कि वह माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के न्यायिक आग्रह को गंभीरता से लेते हुए ओडिशा ट्रेन दुर्घटना के दोषियों सहित देशभर के क्रूर दोषियों पर कड़ी से कड़ी दंडात्मक कार्रवाई कर देश और देशवासियों को कृतार्थ करें।