नाशवान संसार में नाश होने के भय के डर से निर्भय होकर सत्य पर आधारित अपने मौलिक कर्तव्यों पर सदैव संघर्षरत रहना चाहिए। उक्त लड़ाई में लड़ते-लड़ते वाद/विवाद की कसौटियों पर वादी/प्रतिवादी के रूप में राष्ट्र की सेवा निरंतर जारी रखनी चाहिए। जिसमें राष्ट्रीय संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हुए अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की जाए। ताकि न्याय जीवित रहे और देशवासी जंगल राज से बच सकें। जहां कोई भी मोर नाचे तो डिजिटल इंडिया अर्थात पारदर्शी भारत में दिखाई दे।
सर्वविदित है कि झुंड कुत्तों एवं गीदड़ों का होता है। परन्तु जंगल का राजा प्रायः शेर ही होता है। जिसकी एक दहाड़ मात्र से कुत्तों एवं गीदड़ों के झुंड के झुंड भाग खड़े होते हैं और अपने-अपने प्राण बचाने की चिंता करते हैं। चूंकि कुत्तों एवं गीदड़ों में एक भी ऐसा नहीं होता जो अकेला शेर का सामना कर सके। क्योंकि मृत्यु से हर कोई भयभीत होता है और उससे बचने हेतु जीवनभर भागता रहता है। जबकि मृत्यु अटल है और एक दिन समस्त प्राणियों का इसी के आगोश में सोना "अटल" है। फिर हम सब मस्तिष्क के होते हुए भी सुनिश्चित मृत्यु से क्यों भाग रहे हैं?
जबकि हम सब को यह भी ज्ञान है और भलीभांति जानते हैं कि जन्म से पहले हम अपनी मृत्यु को लिखवाकर आए हैं। जिसकी सांसें तक गिनती की हैं। इसके बावजूद सत्य यह है कि हम अपने आज के कर्मों को कल पर छोड़ते हैं। जबकि कल नाम काल का होता है। जिस "काल" को महा विद्वान सोलह कला संपन्न लंकापति रावण ने "कल" मारने हेतु अपनी चारपाई से बांध रखा था। परन्तु वह कल कभी नहीं आया और काल ने रावण को लील लिया था।
उल्लेखनीय है कि हम काल को बांध नहीं सकते और न ही समय के घोड़े को रोक सकते हैं। परन्तु हम अपने सुकर्मों की गति तीव्र अवश्य कर सकते हैं। जिन्हें करने के लिए हमें भीषण चुनौतियों एवं कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ेगा। जिसके लिए हमें "जेल" भी जाना पड़ सकता है। इसलिए हमें सर्वप्रथम अपने मन से जेल का डर निकलना चाहिए। क्योंकि भ्रष्टाचारियों द्वारा भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए धन और शक्ति की कोई कमीं नहीं होती।
जिन शक्तियों में "मानहानि" एक ऐसी शक्ति है। जिसके आधार पर भ्रष्ट वादी द्वारा प्रतिवादी को मात्र एक "नोटिस" भेजने पर प्रतिवादी की सांस अटक जाती है। जिसका उद्देश्य मात्र और मात्र प्रतिवादी को डराना और धमकाना होता है। जिससे जो "डर" गया समझो वह मृत्यु से पूर्व बेमौत "मर" गया। हालांकि ध्यान रहे माननीय न्यायालय की अवमानना में छः माह के कारावास का दंड होता है और भारतीय दण्ड संहिता के अधिनियम 1860 की धारा 499/500 के अंतर्गत अधिकतम दो वर्ष के कारावास का दण्ड या आर्थिक दंड या दोनों दंडों से दंडित किया जा सकता है। जिसपर यह तय आपने करना है कि बिना अपराध के डर-डरकर जीवनयापन करना है या निडर होकर "नोटिस" का सामना करना है। क्योंकि मानहानि के वाद में वादी के मान-सम्मान का हनन होना चाहिए। जिसे वादी द्वारा माननीय खुली न्यायालय में प्रमाणित करना होता है। जबकि मेरा दावा है कि भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी कर्मचारी/अधिकारी प्रमाणित नहीं कर सकते। चूंकि भ्रष्टाचार की दलदल में फंसे सरकारी कर्मचारी/अधिकारी एक न एक दिन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ ही जाते हैं। चूंकि भारत को भ्रष्टाचारमुक्त भारत बनाने के लिए माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने डिजिटल इंडिया अर्थात पारदर्शी भारत अभियान चला रखा है। जिसमें सार्वजनिक सत्य, संदेश या सार्वजनिक जानकारियों को छुपाना अपराध है। जिसको सार्वजनिक करने के आग्रह को "मानहानि" का चोला पहनाना भी संगीन अपराध है।
अतः हमें राष्ट्र के प्रति प्रायः निष्ठावान रहते हुए सदैव सत्य पर डटे रहना चाहिए। चूंकि हमारे सद्भावनापूर्ण आलेखों से किसी ईमानदार व्यक्तित्व की मानहानि हो ही नहीं सकती। क्योंकि हमारे मौलिक कर्तव्यों से भरे आलेखबाण सदैव भ्रष्टाचारियों की ही छाती भेदते हैं। जिनके द्वारा भेजे नोटिसों की परिधि में वह स्वयं फंस जाते हैं। इसलिए जीवन की उक्त प्रतिस्पर्धा का भी आनंद लेना चाहिए। जिसमें मात्र दो वर्ष के कारावास की छोटी सी एक चुनौती है। ऐसे चुनौतियों के मैं और मेरा सबकुछ न्यौछावर है। जिसके लिए मेरी मृत्यु भी बलिदान कहलाएगी। क्योंकि मेरा संघर्ष राष्ट्रीय विधिक साक्षरता और संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों पर आधारित है। जिसपर मैं गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूॅं। चूंकि राष्ट्र सर्वोपरि है। ॐ शांति ॐ