जी हॉं, प्रसन्नता एक आलौकिक औषधि है जिसका निःशुल्क सेवन सदैव लाभप्रद होता है। क्योंकि इसके सेवन से प्रायः मानव का शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और यहॉं तक कि अध्यात्मिक उपचार भी संभव है अर्थात किसी भी रोगी को निरोगी किया जा सकता है। जबकि अप्रसन्नता स्वयं में एक असाध्य रोग है जो स्वयं का ही नहीं बल्कि अपने संगी साथियों को भी रोगी बना देती है जिसका कटुसत्य यह है कि अप्रसन्न व्यक्ति की अप्रसन्नता के अज्ञात कारणों के आधार पर उसके निकटतम पारिवारिक सदस्यों के सम्बन्धों में भी दूरियॉं आ जाती हैं और प्रकृति द्वारा विशेष भेंट स्वरूप प्रदत्त वरदान रूपी आलौकिक जीवन अप्रकृतिक होकर नष्ट हो जाता है।
जीवन की भौतिकता का उल्लेख करें तो मानवीय तनाव भी अप्रसन्नता का ही घिनौना प्रतिफल है। चूॅंकि न्यूटन की गति का तृतीय नियम स्पष्ट कहता है कि प्रत्येक क्रिया के समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है। ऐसे में उपरोक्त सिद्धांत स्पष्ट सिद्ध करता है कि अप्रसन्नता ही तनाव की क्रूरतम जननी है जिस विकृत विकृति से शीघ्र अतिशीघ्र बचने हेतु प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर प्रयोग करना चाहिए और अधिक से अधिक समय प्रसन्न रहने का अभ्यास करते रहना चाहिए।
क्योंकि सर्वविदित है कि मानव शरीर में प्राकृतिक अंतःस्रावी तंत्र होता है जिसकी ग्रंथियॉं हार्मोन बनाती और छोड़ती हैं जो मानवीय शरीर में सभी प्रक्रियाओं को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करती हैं। संयोगवश वे ही मानव की वृद्धि और विकास को व्यवस्थित करते हुए मानव की मनोदशा व भावनाओं से लेकर यौन क्रिया और नींद को भी नियंत्रित करते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रसन्नचित होने पर हमारा अंतःस्रावी तंत्र सकारात्मक भावनाओं की उत्पत्ति करेगा और उक्त उत्पत्ति सम्पूर्ण शरीर एवं मनमस्तिष्क में अवश्य हर्षोल्लास उत्पन्न करेगी।
उल्लेखनीय है कि जब चहुॅं ओर हर्षोल्लास होगा तो प्राणी का तन और मन भी हर्षोल्लास से परिपूर्ण हो जाएगा और उसकी ग्रंथियॉं भी प्रफुल्लित होकर सकारात्मकता के हार्मोन बनाऍंगी जो प्राणी को प्राकृतिक रूप से तनावमुक्त करते हुए स्वस्थ करेंगी और सर्वविदित है कि स्वास्थ्य ही सर्वश्रेष्ठ जीवन का आधार होता है।
अतः हमें अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी, सकारात्मक दृष्टिकोण से अपने अनमोल जीवन को सार्थक बनाते हुए, जीवनभर प्रसन्न रहने का सदैव प्रयास करना चाहिए। ताकि हम सब अपने अनमोल जीवन के समस्त आलौकिक स्वप्नों को साकार करते हुए, अपने घर व राष्ट्र का सकारात्मक ही नहीं बल्कि सुखद निर्माण का तिरंगा फहराते हुए वैश्विक उत्थान कर सकें। सम्माननीयों जय हिन्द
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर