समय चलायमान है और प्रकृति परिवर्तनशील होती है। दोनों ही जीवन का आधार होते हैं जिनसे कर्मों की उत्पत्ति होती है और कर्म ही पूजा होते हैं। चूॅंकि कर्म भाग्यविधाता होते हैं जो भाग्य को दुर्भाग्य अथवा सौभाग्य में परिवर्तित करते हैं। जैसे कर्मचारी अधिकारी बनते हैं और अधिकारी उच्च अधिकारी बनते हैं। जिनका कर्म उनकी सेवा पुस्तिका में अंकित व वर्णित होता है जो सुनिश्चित करता है कि उक्त कर्मचारी अथवा अधिकारी पदोन्नति के योग्य है या नहीं है।
सर्वविदित है कि ऐसी ही सेवा पुस्तिका प्रकृति अर्थात ईश्वर के पास भी होती है जो कर्मों के आधार पर बनती बिगड़ती है और सामान्य रूप में अदृश्य होती है। परन्तु कटुसत्य यह है कि प्रत्येक मानव की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, अध्यात्मिक और आत्मिक प्रतिष्ठा अथवा अप्रतिष्ठा का मूल आधार कर्म ही होते हैं जो अनाशवान एवं चिंरजीवी होते हैं। चोर जिन्हें चुरा नहीं सकता, पानी इन्हें बहा नहीं सकता, पवन उड़ा नहीं सकता और मृत्यु मार नहीं सकती है।
कटुसत्य यह भी है कि कर्म प्रत्येक मानव के वश में होते हैं जिन्हें धर्म ही नहीं बल्कि विज्ञान भी मानता है अर्थात कर्म प्रधान जीवन में कर्म करने के लिए हर कोई सामाजिक ही नहीं बल्कि संवैधानिक रूप से भी स्वतंत्र होता है। बस उक्त कर्मों को करने के लिए उसमें एक ओर ठोस आत्मविश्वास और दूसरी ओर सशक्त इच्छाशक्ति होनी चाहिए। जब किसी ने यह ठान लिया तो फिर वर्तमान एवं भविष्य उसका है अर्थात उसका कोई बाल भी बॉंका नहीं कर सकता है। कहने का तात्पर्य स्पष्ट है कि उक्त मानव का आज और कल उज्ज्वल एवं सुनहरा है अर्थात चमकता सितारा नहीं सूर्य है।
कटुसत्य का कटुसत्य यह भी वर्णनीय है कि मानव जन्म देने के लिए जिस प्रकार माता-पिता सदैव पूजनीय होते हैं उसी प्रकार मानवीय जीवन के कर्मकाण्डों एवं विकास हेतु विवाह बंधनों में बंधे दम्पत्ति भी एक दूसरे के पूरक ही नहीं बल्कि सदैव पूजनीय भी होते हैं अर्थात पति के लिए धर्मपत्नी पूजनीय है और धर्मपत्नी के लिए पति पूजनीय है। इसलिए शास्त्रों में किसी भी शुभ कार्य में पति और पत्नी का एक साथ बैठना अनिवार्य माना जाता है। जिसका एक दृष्टिकोण यह भी है कि जब गृहस्थ की गाड़ी के डिब्बे उन्होंने एक साथ जोड़े हैं तो उन्हें मंजिल तक पहुॅंचाने का दायित्व भी दोनों का ही होता है। कर्मों के अनुसार दोनों ही उत्तरदाई हैं। जहॉं मार्ग में आने वाली कष्टमय विपत्तियों एवं विराट चुनौतियों का कोई विशेष महत्व होता ही नहीं है। चूॅंकि यह क्षणिक होती हैं और सर्वविदित है कि प्रत्येक काली रात का नाश सूर्य का प्रकाश करता ही रहता है। धैर्य जिसका एक मात्र उपचार होता है।
चूॅंकि मानवीय मूल्यों पर आधारित चुनौतीपूर्ण चुनौतियॉं ही निर्धारित करती हैं कि उक्त धैर्यवान व्यक्ति का व्यक्तित्व क्या है और वह अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक करते हुए कौन-कौन से कीर्तिमान स्थापित करने के योग्य है? क्योंकि मानव की मानवीय आकृतियों की प्राकृतिक विकृतियों एवं प्रवृत्तियों को समय का चक्र अर्थात कालचक्र ही सुनिश्चित कर दर्शाता है कि व्यक्ति का अस्तित्व और व्यक्तित्व क्या है? सम्माननीयों जय हिन्द
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर