बाल्यकाल में दादी मॉं झूठे शॅंख की कहानी सुनाया करती थीं जो एक अशर्फी मॉंगने पर दो अशर्फियॉं देने का आश्वासन देता था और इस खेल को कभी समाप्त नहीं करता था। परन्तु दुर्भाग्यवश वह झूठा शॅंख देता कभी कुछ भी नहीं था। समकालीन भारत में उसी झूठे शॅंख का स्वरूप भारतीय न्यायपालिका के माननीय महा विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ जी अर्थात धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी ने ले लिया हुआ है।
जिन्होंने भारतीय नागरिकों को न्याय के रूप में नौ नवंबर दो हजार बाइस को माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के कर कमलों द्वारा पचासवें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ लेने के उपरान्त भारतीय नागरिकों को न्याय के रूप में सम्पूर्ण न्याय देने के लिए बड़े-बड़े आश्वासन तो दिए हैं परन्तु वे अपने उक्त आश्वासनों को पूर्ण करने के स्थान पर न्यायिक योद्धाओं को "धीमा विष" बॉंट रहे हैं जो अहिंसा परमो धर्म के लिए ही नहीं बल्कि भारतीयता और भारतीय संविधान के लिए भी अत्यधिक घातक सिद्ध हो रहा है।
इसमें भी दो राय नहीं है कि माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी की भॉंति पहले उन्चास माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीशों सर्वश्री न्यायमूर्ति श्री एच.के. कनिया जी, श्री एम.पी. शास्त्री जी, श्री मेहरचंद महाजन जी, श्री बी.के. मुखरीजा जी, श्री एस.आर. दास जी, श्री बी.पी. सिन्हा जी, श्री पी.बी. गजेंद्रगडकर जी, श्री ए.के. सरकार जी, श्री के.एस. राव जी, श्री के.एन. वान्चू जी, श्री एम. हिदायतुल्ला जी, श्री जे.सी. शाह जी, श्री एस.एम. सिकरी जी, श्री ए.एन. रे जी, श्री मिर्जा हमीदुल्ला जी, श्री वाई.वी. चंद्रचूड़ जी, श्री पी.एन. भगवती जी, श्री आर.एस. पाठक जी, श्री ई.एस. वेंकटरमैय्या जी, श्री एस. मुखर्जी जी, श्री रंगनाथ मिश्र जी, श्री के.एन. सिंह जी, श्री एम.एच. कनिया जी, श्री एल.एम. शर्मा जी, श्री एम.एन. वेंकटचेलैय्या जी, श्री ए.एम. अहमदी जी, श्री जे.एस. वर्मा जी, श्री एम.एम. पुंछी जी, श्री ए.एस. आनन्द जी, श्री एस.पी. भरुचा जी, श्री बी.एन. कृपाल जी, श्री जी.बी. पटनायक जी, श्री वी.एन. खरे जी, श्री राजेन्द्र बाबू जी, श्री आर.सी. लहोटी जी, श्री वाई.के. सभरवाल जी, श्री के.जी. बालकृष्णन जी, श्री एच.एस. कापड़िया जी, श्री अल्तमस कबीर जी, श्री पी. सतशिवम जी, श्री राजेन्द्र मल लोढ़ा जी, श्री एच.एल. दत्तु जी, श्री टी.एस. ठाकुर जी, श्री जगदीश सिंह खेहर जी, श्री दीपक मिश्रा जी, श्री रंजन गोगोई जी, श्री शरद अरविंद बोबडे जी, श्री एन.वी. रमण जी, श्री उदय यू. ललित जी जैसे न्यायाधीशों ने भी भारत सरकार द्वारा भारतीय नागरिकों से एकत्रित कर से भारीभरकम वेतन भत्ते रूपी राजश्री सुख सुविधाओं से "भात" खाकर भारतीय याचिकाकर्ताओं को ही "धीमा विष" बॉंटा हुआ है। जिसे किसी भी दृष्टिकोण से शोभनीय नहीं कहा जा सकता है।
जबकि भारतीय संविधान भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए ही लिखा गया है। जिसमें नागरिकों को देश का स्वामी माना गया है और सरकारी कर्मचारियों अथवा अधिकारियों को सेवक दर्शाया गया है। निस्संदेह न्यायाधीश भी वैतनिक सेवकों में ही आते हैं परन्तु वह अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक पूरा करने में पूर्णतया अक्षम प्रमाणित हो रहे हैं।
क्योंकि उपरोक्त माननीय विद्वान न्यायाधीश वास्तव में विद्वता में नपुंसक हैं और संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों से अनभिज्ञ हैं। वह नहीं जानते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों ने उक्त स्वतंत्रता के लिए कहॉं-कहॉं और कैसी-कैसी परिस्थितियों में किन-किन यातनाओं को झेला है। वे नहीं जानते कि उक्त आत्माओं द्वारा इन्हें पूछने पर यह क्या उत्तर देंगे? वह तो यह भी नहीं जानते हैं कि चमकौर के युद्ध में शूरवीर पूजनीय गुरु गोविंद सिंह जी ने कैसे मात्र चालीस योद्धाओं को शत्रु पक्ष की सेना के सवा लाख शत्रुओं से अपना एक सिंह योद्धा लड़वाया था और तो और यह नपुंसक यह भी नहीं जानते कि अपने छोटे भाई छः वर्षीय बालक फतेह सिंह का नींव में पहले दम घुटने पर हुए बलिदान पर जीवित नौ वर्षीय जोरावर सिंह के मन मस्तिष्क में क्या-क्या घटा होगा? वह क्षण कितने संवेदनशील और मार्मिक होंगे?
अतः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी आपके शुभ हाथों से ली गई शपथ का सम्मान करते हुए, काश माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी द्वारा "घर-घर न्याय पहुॅंचाने के संकल्प" की अलख जगाने का नाटकीय बहरूपियापन त्याग कर वास्तव में वर्तमान न्यायिक वास्तविकता पर विचार करें, तो मेरा दावा है कि वह अपने शेष बचे अनमोल कार्यकाल में भारतीय न्यायिक योद्धाओं को "धीमे विष" से छुटकारा दिलाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं और शीशे की भॉंति स्पष्ट दिखाई दे रहे विवादों पर त्वरित न्याय दिला कर कलॅंकित झूठे शॅंख को सच्चे शॅंख में परिवर्तित कर विश्व न्यायिक कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2023/0052747
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
28/12/2023
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
बाल्यकाल में दादी मॉं झूठे शॅंख की कहानी सुनाया करती थीं जो एक अशर्फी मॉंगने पर दो अशर्फियॉं देने का आश्वासन देता था और इस खेल को कभी समाप्त नहीं करता था परन्तु दुर्भाग्यवश वह झूठा शॅंख देता कभी कुछ भी नहीं था समकालीन भारत में उसी झूठे शॅंख का स्वरूप भारतीय न्यायपालिका के माननीय महा विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ जी अर्थात धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी ने ले लिया हुआ है जिन्होंने भारतीय नागरिकों को न्याय के रूप में नौ नवंबर दो हजार बाइस को माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के कर कमलों द्वारा पचासवें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ लेने के उपरान्त भारतीय नागरिकों को न्याय के रूप में सम्पूर्ण न्याय देने के लिए बड़े बड़े आश्वासन तो दिए हैं परन्तु वे अपने उक्त आश्वासनों को पूर्ण करने के स्थान पर न्यायिक योद्धाओं को धीमा विष बॉंट रहे हैं जो अहिंसा परमो धर्म के लिए ही नहीं बल्कि भारतीयता और भारतीय संविधान के लिए भी अत्यधिक घातक सिद्ध हो रहा है इसमें भी दो राय नहीं है कि माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की भॉंति पहले उन्चास माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीशों सर्वश्री न्यायमूर्ति श्री एच.के. कनिया श्री एम.पी. शास्त्री श्री मेहरचंद महाजन श्री बी.के. मुखरीजा श्री एस.आर. दास श्री बी.पी. सिन्हा श्री पी.बी. गजेंद्रगडकर श्री ए.के. सरकार श्री के.एस. राव श्री के.एन. वान्चू श्री एम. हिदायतुल्ला श्री जे.सी. शाह श्री एस.एम. सिकरी श्री ए.एन. रे श्री मिर्जा हमीदुल्ल श्री वाई.वी. चंद्रचूड़ श्री पी.एन. भगवती श्री आर.एस. पाठक श्री ई.एस. वेंकटरमैय्या श्री एस. मुखर्जी श्री रंगनाथ मिश्र श्री के.एन. सिंह श्री एम.एच. कनिया श्री एल.एम. शर्मा श्री एम.एन. वेंकटचेलैय्या श्री ए.एम. अहमदी श्री जे.एस. वर्मा श्री एम.एम. पुंछी श्री ए.एस. आनन्द श्री एस.पी. भरुचा श्री बी.एन. कृपाल श्री जी.बी. पटनायक श्री वी.एन. खरे श्री राजेन्द्र बाबू श्री आर.सी. लहोटी श्री वाई.के. सभरवाल श्री के.जी. बालकृष्णन श्री एच.एस. कापड़िया श्री अल्तमस कबीर श्री पी. सतशिवम श्री राजेन्द्र मल लोढ़ा श्री एच.एल. दत्तु श्री टी.एस. ठाकुर श्री जगदीश सिंह खेहर श्री दीपक मिश्रा श्री रंजन गोगोई श्री शरद अरविंद बोबडे श्री एन.वी. रमण श्री उदय यू. ललित जी जैसे न्यायाधीशों ने भी भारत सरकार द्वारा भारतीय नागरिकों से एकत्रित कर से भारीभरकम वेतन भत्ते रूपी राजश्री सुख सुविधाओं से भात खाकर भारतीय याचिकाकर्ताओं को ही धीमा विष बॉंटा हुआ है जिसे किसी भी दृष्टिकोण से शोभनीय नहीं कहा जा सकता है जबकि भारतीय संविधान भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए ही लिखा गया है जिसमें नागरिकों को देश का स्वामी माना गया है और सरकारी कर्मचारियों अथवा अधिकारियों को सेवक दर्शाया गया है निस्संदेह न्यायाधीश भी वैतनिक सेवकों में ही आते हैं परन्तु वह अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक पूरा करने में पूर्णतया अक्षम प्रमाणित हो रहे हैं क्योंकि उपरोक्त माननीय विद्वान न्यायाधीश वास्तव में विद्वता में नपुंसक हैं और संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों से अनभिज्ञ हैं वह नहीं जानते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों ने उक्त स्वतंत्रता के लिए कहॉं कहॉं और कैसी कैसी परिस्थितियों में किन किन यातनाओं को झेला है वे नहीं जानते कि उक्त आत्माओं द्वारा इन्हें पूछने पर यह क्या उत्तर देंगे वह तो यह भी नहीं जानते हैं कि चमकौर के युद्ध में शूरवीर पूजनीय गुरु गोविंद सिंह जी ने कैसे मात्र चालीस योद्धाओं को शत्रु पक्ष की सेना के सवा लाख शत्रुओं से अपना एक सिंह योद्धा लड़वाया था और तो और यह नपुंसक यह भी नहीं जानते कि अपने छोटे भाई छः वर्षीय बालक फतेह सिंह का नींव में पहले दम घुटने पर हुए बलिदान पर जीवित नौ वर्षीय जोरावर सिंह के मन मस्तिष्क में क्या क्या घटा होगा वह क्षण कितने संवेदनशील और मार्मिक होंगे अतः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी आपके शुभ हाथों से ली गई शपथ का सम्मान करते हुए, काश माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी द्वारा घर घर न्याय पहुॅंचाने के संकल्प की अलख जगाने का नाटकीय बहरूपियापन त्याग कर वास्तव में वर्तमान न्यायिक वास्तविकता पर विचार करें तो मेरा दावा है कि वह अपने शेष बचे अनमोल कार्यकाल में भारतीय न्यायिक योद्धाओं को धीमे विष से छुटकारा दिलाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं और शीशे की भॉंति स्पष्ट दिखाई दे रहे विवादों पर त्वरित न्याय दिला कर कलॅंकित झूठे शॅंख को सच्चे शॅंख में परिवर्तित कर विश्व न्यायिक कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं जय हिन्द प्रार्थी डॉ. इंदु भूषण बाली
Current Status
Grievance received
Date of Action
28/12/2023
Officer Concerns To
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President's Secretariat
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President's Secretariat
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