वीरगति "पागलपन' का पर्यायवाची है अर्थात दोनों का अर्थ समान ही है। क्योंकि पागलपन के बिना वीरगति प्राप्त करना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव होता है। जिसका उदहारण युगों-युगों से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में प्रयाप्त मात्रा में मिलता है। जैसे द्वापर युग के 'महाभारत' नामक विश्वयुद्ध में सर्वप्रथम भीष्म पितामह जी ने अपनी मृत्यु का रहस्य बताकर इच्छा अनुसार प्राण त्यागने से बाणों की शैय्या पर कष्ट भोगते हुए वीरगति को प्राप्त करने का पागलपन किया था। ऐसे ही बाल योद्धा अभिमन्यु ने चक्रव्यूह से बाहर निकलने का ज्ञान नहीं होने पर भी चक्रव्यूह में प्रवेश कर वीरगति प्राप्त करने का साहसी पागलपन किया था। चूॅंकि 'वीरगति और पागलपन' के चोली दामन का साथ युगों-युगों से चलता आ रहा है और चलता भी रहेगा।
उल्लेखनीय यह भी है कि उपरोक्त पागलपन करने के लिए कर्ताओं के पास साहसिक गुर्दे, निरंतर तनावपूर्ण पीड़ा सहन करने के लिए धैर्य, निर्धारित लक्ष्य पर आधारित दृष्टिकोण के साथ-साथ दृढ़ संकल्पित आत्मविश्वास की लगन एवं त्याग और बलिदान जैसी दूरदृष्टी होना अनिवार्य ही नहीं बल्कि आवश्यक होता है। चूॅंकि बलिदान शब्द को कहना जितना सरल होता है उससे कहीं अधिक बलिदान होना कठिन होता है। जिसकी करनी और कथनी में आकाश और पृथ्वी का अंतर होता है। चूॅंकि उक्त पागलपन का सामना मृत्यु से होने वाला होता है और परमार्थ हेतु मृत्यु का स्वागत वीर नर-नारी ही कर सकते हैं।
परमार्थ की वीरता का गुणगान करें तो परम पूजनीय गुरु गोविंद सिंह जी का हृदय विदारक रक्तरंजित इतिहास मानवीय मूल्यों में सर्वोच्च व अग्रणी है जिन्होंने क्रूरता का विरोध करते हुए बाल्यावस्था में अपने मिताश्री और बाद में अपने चारों बेटों को धर्म रक्षा की भेंट चढ़ा दिया था। उन्होंने मानवीय शत्रुओं के सवा लाख सैनिकों से अपना एक शिष्य योद्धा लड़ाने का साहस दिखाया था। उनके दो युवा अंश चमकोर के भयंकर युद्ध में एवं दो बाल अंश सरहंद की दीवारों में चिन कर वीरगति प्राप्त कर चुके थे। जिनकी असहनीय पीड़ाओं को सहन करते हुए भी वह युद्धरत थे। अपने भारत देश के ऐसे महान पूजनीय गुरुओं को शत शत नमन करते हुए मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो रहा है जिनके चरणों की मैं घूल भी नहीं हूॅं।
परन्तु वर्णनीय है कि मेरा पागलपन भी अब गति पकड़ रहा है और उक्त गति में वीरगति से पूर्व मुझे परमगति प्राप्त हो रही है। चूॅंकि मेरे जीवन के निर्धारित लक्ष्य स्वतः पूर्ण हो रहे हैं। जिसका उदहारण मेरे अनेक विश्व कीर्तिमान स्थापित होना, बिना विधिक अर्थात एलएलबी परीक्षा उत्तीर्ण किए माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों से विधिवत विधिक तर्क-वितर्क करना, उन्हीं माननीय न्यायाधीशों द्वारा मुझे पीटिशनर इन पर्सन व एडवोकेट लिखना, विश्व कीर्तिमान स्थापित करने के आधार पर भारत सरकार द्वारा पंजीकृत 'इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड' के मुख्य सम्पादक डॉ. बिस्वरूप राय चौधरी जी द्वारा मुझे अपने फरीदाबाद मुख्य कार्यालय में सादर बुलाकर सार्वजनिक रूप से 'वर्ल्ड रिकॉर्ड यूनिवर्सिटी' की मानिद उपाधी से पुरस्कृत करने की सार्वभौमिकता दर्शाता है कि मेरा पागलपन अद्भुत ही नहीं बल्कि अद्वितीय न्यायिक सौभाग्यशाली भी है। जिसे अकल्पनीय एवं अविश्वसनीय कहना और उस पर स्वाभाविक गौरवान्वित होना अतिश्योक्ति कतई नहीं है। सम्माननीयों जय हिन्द
स्वरचित
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौडियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर