आज सुबह सुबह सुनने को मिला था कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू के कोई भले अधिकारी मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शॉंति प्रदान करें और उन्हें अपने चरणों में स्थान दें। क्योंकि जब कहने वाले उन्हें भला व्यक्ति कह रहे हैं तो अवश्य ही वह भले मानस ही होंगे। मैंने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ओम शॉंति ओम का जाप किया।
परन्तु मेरे मन मस्तिष्क में अनेक अनसुलझे प्रश्नों ने विद्रोह कर दिया, जो मुझे ही पूछने लगे कि यह कैसे हो सकता है? चूॅंकि मुझे सदैव बताया जाता था कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी हो या रेडियो स्टेशन जम्मू अथवा दूरदर्शन केन्द्र जम्मू ही क्यों न हो, उनके अधिकारी तो क्या कर्मचारी भी मृत्यु को प्राप्त नहीं होते। चूॅंकि इनके संगठन होते हैं और यह किसी भी कार्य को संगठित होकर ही सम्पन्न करते हैं। जैसे किस कलाकार अथवा लेखक को कार्यक्रम देना है या नहीं देना है, प्रतिउत्तर में उस कलाकार या लेखक से क्या लेना है या नहीं लेना है? ऐसे में अंतिम यात्रा अकेले क्यों? कहॉं हैं जो भ्रष्टाचार में संगठित होकर सदाचारियों को असहनीय पीड़ा पहुॅंचाते थे?
प्रश्न गंभीर ही नहीं बल्कि न्यायिक हैं कि ऐसे में किसी एक की मृत्यु केसे हो सकती है और वह अपनी अंतिम यात्रा पर अकेले कैसे जा सकते हैं? उनके संगठन के शेष साथी उनका साथ क्यों नहीं दे रहे? जबकि वह जीवन भर संगठित रहें हैं। जहॉं तक मुझे समझाया जाता था कि इनके संगठन में तो कलाकार अथवा लेखक भी संगठित होकर अपने स्वार्थ को साधते हैं। वह पहले से सबको यह कहकर चौकन्ना कर देते हैं कि उक्त लेखक नकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण है और नकारात्मक ही लिखता है। यह मैं इस आधार पर लिख रहा हूॅं क्योंकि ऐसे लेखकों में से एक लेखक मैं भी था और अब भी हूॅं।
उल्लेखनीय है कि युवावस्था से ही मैं जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू, दूरदर्शन केन्द्र जम्मू और रेडियो स्टेशन जम्मू का पंजिकृत लेखक हूॅं और अपने लेखन से राष्ट्रसेवा भी कर रहा हूॅं। परन्तु राष्ट्रहित में सरकारी सेवा के अंतर्गत भ्रष्टाचार के विरुद्ध छेड़े अपने अभियान के कारण मैं तपेदिक रोग से ग्रस्त हो गया था और दुर्भाग्यवश तपेदिक रोधी दवा खरीदने में भी मैं सक्षम नहीं रहा था। ऐसे समय में मुझे दूरदर्शन केन्द्र जम्मू, रेडियो स्टेशन जम्मू और जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी ने भी बुक नहीं किया था, जिसके अल्प मानदेय से संभवतः मैं तपेदिक रोधी दवा खरीदने में सक्षम हो जाता। परन्तु कार्यक्रमों की भीख मॉंगने पर भी मुझे कार्यक्रम नहीं दिए गए थे और सर्वविदित है कि वर्तमान में भी मुझे असंवैधानिक तिरस्कृत किया जा रहा है। जबकि अकादमी के सेवानिवृत्त अधिकारियों को आज भी हिंदी एवं डोगरी भाषा के कार्यक्रमों में प्राथमिकता के आधार पर बुक व मंचासीन भी किया जा रहा है। उपरोक्त परिस्थितियों में अकादमी का कोई अकेला अधिकारी सृष्टि छोड़ कर कैसे जा सकता है? संभवतः यह नकारात्मक समाचार कहीं किसी दुष्ट मानव की नकारात्मकता का परिणाम तो नहीं। ईश्वर करे उपरोक्त समाचार झूठा प्रमाणित हो जाए।
वैसे सच यह भी है कि मृत्यु प्राकृतिक परिवर्तन होता है जिसमें आत्मा अपना नया स्वस्थ शरीर पाने हेतु पुराना रोगी शरीर त्यागती है। क्योंकि हमारे पवित्र ग्रंथ "गीता" के उपदेश के अनुसार आत्मा अमर होती है और पॅंचतत्वों से निर्मित शरीर नाशवान होता है जिसका महत्व जीवनचक्र के एक भाग से अधिक कुछ भी नहीं होता है। क्योंकि प्राणी की मृत्यु के उपरांत उसकी आत्मा अपने शुभ-अशुभ कर्मों के आधार पर किसी अज्ञात लोक में वास करती है जिसे नरक अथवा स्वर्ग की संज्ञा दी गई है। इसलिए हमें अपने कर्म सोच समझकर करने चाहिए और भ्रष्टाचार का सदैव त्याग करना चाहिए।
परन्तु विज्ञान इसे नहीं मानता है। क्योंकि विज्ञान जीवित प्राणी के शरीर के सभी जैविक प्रक्रियाओं का समाप्त हो जाना, अर्थात मानव का हृदय धड़कन बंद हो जाना, यकृत अथवा गुर्दे निष्क्रिय हो जाने, मस्तिष्क द्वारा निर्णय लेने की क्षमता खो देना और शरीर के समस्त अंगों द्वारा सुचारू ढंग से कार्य नहीं करने को मृत्यु मानता है।
अतः जीवन का अंतिम कड़वा अटल सत्य मृत्यु ही है अर्थात जो जन्मा वह मरा अवश्य और जो बना वह टूटा भी है। जिसके आधार पर विद्वानों का मानना है कि दूरदर्शन, रेडियो स्टेशन और अकादमियॉं ही नहीं बल्कि यह सम्पूर्ण सृष्टि एक सराय है जिसमें हम सब शरणार्थी हैं और हम शरणार्थियों को समझना चाहिए कि यह वैकल्पिक सरकारी कुर्सियॉं स्थाई नहीं हैं जिनसे चिपकने का मोह एक न एक दिन त्यागना ही पड़ेगा। जैसे आज वह गए हैं और कल हमारा जाना सुनिश्चित है। ॐ शॉंति ॐ। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखक व राष्ट्रीय पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, आरएसएस का स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जनपद जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।