सार्वभौमिक सत्य यह है कि जम्मू और कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू द्वारा आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में मुझे व्यक्तिगत रूप से तो नहीं परन्तु सर्वसाधारण रूप से सादर आमंत्रित किया हुआ था। जिसकी सूचना भी मुझे डोगरी भाषा के एक विद्वान कवि से प्राप्त हुई थी। पहले तो मुझे व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित नहीं करने पर क्रोध आया। परन्तु जैसे ही मुझे अकादमी के आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी द्वारा आरम्भिक मार्गदर्शन में कहे गए शब्दों का स्मरण हुआ तो मैंने आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने का मन बना लिया था।
चूंकि श्री भरथ सिंह मन्हास जी ने अनेकों बार अपनी मधुर शब्दावली के अनुपम स्नेह से मार्गदर्शित कर निम्न शब्दों से मुझे शिक्षित करते हुए कहा था कि बाली जी "आप जैसे जुझारू व्यक्तित्व को सदैव सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण" रहना चाहिए। क्योंकि समय आने पर आपकी असहनीय पीड़ादाई अनुपम उपलब्धियों का मूल्यांकन होते ही यह समाज आपका आपकी गुणवत्ता का गुणगान करते हुए तालियां बजाकर स्वागत करेगा। उन्होंने अपनी प्रेरणादायक निस्वार्थ वाणी को लघु विराम देने के उपरांत अपनी बात जारी रखते हुए पुनः कहा था कि मेरा अटल विश्वास है कि सकारात्मकता आपको लाभ ही लाभ देगी जिसमें 'हानि' का प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए बंधुवर सकारात्मकता के घोड़े पर सवार होकर अपनी योग्यता का चारों ओर प्रदर्शन करें और देश के अन्य संस्थानों में भी फैले भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने का अथक प्रयास करें। जिसके लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं।
उनकी उपरोक्त शुभकामनाओं के अमृत रूपी संस्मरणों का स्मरण होते ही मेरे मनमस्तिष्क में अकल्पनीय ही नहीं बल्कि अविश्वसनीय ऊर्जा का संचार हुआ और अगले ही क्षण मैं अपने कपड़े और टाई पहन रहा था। चूंकि मेरे हृदय तल में उनके लिए अपार सम्मान था। जो परम्परागत अवर्णनीय है। परन्तु उल्लेखनीय है कि इसके बावजूद मैं के.एल. सहगल सभागार में देरी से पहुंचा था। जहां सौभाग्यवश अकादमी के आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी अभी आए हुए अतिथियों को अपने स्वागती भाषण से मंत्रमुग्ध कर रहे थे। वर्णनीय यह भी है कि सभागार आए हुए अतिथियों से पूरी तरह भरी हुई थी। जिसमें डोगरी के भविष्य माने जाने वाले जम्मू विश्वविद्यालय के डोगरी भाषा के शोधकर्ता भी सम्मिलित थे।
मेरे सौभाग्य का सितारा सातवें आकाश पर उस समय प्रकाशमान हुआ जब पद्मश्री सम्मान से सम्मानित साहित्यकार श्री मोहन सिंह सलाथिया जी ने अपने निर्धारित कुंजी भाषण से पूर्व कुछ शब्द कहने की अनुमति मंचासीन विद्वानों से विधिपूर्वक मांगी थी। मेरा माथा ठनका था। चूंकि पद्मश्री मोहन सिंह सलाथिया जी एक साहसी कलमकार ही नहीं बल्कि निर्भीक प्रवक्ता भी हैं। जिन्होंने अत्यंत महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करते हुए कड़वे सच का खुले मंच पर निडरतापूर्वक वर्णन कर दिया। जो वास्तव में डोगरी हितों के लिए ही नहीं बल्कि डोगरे कलमकारों के लिए भी हित में था अर्थात लोकहित में था और निस्संदेह उक्त लोकहित इक्कीसवीं सदी की राष्ट्रीय भावना की प्रस्तुति भी था। जिसे उन्होंने अकादमी के कर्मचारियों की कमी और उस कमी के कारण डोगरी भाषा के आधारभूत लेखकों को आमंत्रित नहीं करने पर दुःख प्रकट किया था। उल्लेखनीय यह भी है कि उन्होंने कर्मचारियों की कमीं के बावजूद सुव्यवस्थित कार्यक्रम के आधार पर अकादमी, अकादमी आयोजकों सहित आदरणीय श्रीमती रीटा खड़याल की भूरी भूरी प्रसंशा की थी। जिसे सराहनीय, अतुल्य एवं अद्वितीय सम्बोधन करना अतिश्योक्ति नहीं है। चूंकि यह शब्दावली अकादमी के आयोजित कार्यक्रमों में चल रही वर्तमान कुप्रथा "तू मेरी पीठ खुजा बदले में मैं तेरी पीठ खुजाऊंगा" के स्थापित रीति रिवाजों से पूर्णतया भिन्न ही नहीं बल्कि विपरीत भी थी और उसे सराहनीय योगदान भी कहा जा सकता है। जिस योगदान से वर्षों से बंद पड़े मेरे चक्षुओं के खुलने की ध्वनि मुझे स्पष्ट सुनाई थी और सत्य यह भी है कि उक्त ध्वनि से मेरे एक प्रश्न का स्पष्ट उत्तर भी मुझे मिला था। जिससे मुझे ज्ञात हो गया था कि अंततः साहित्य अकादमी दिल्ली के विद्वान पर्यवेक्षकों ने डोगरी के ऊॅंची दुकान फीका पकवान की कहावत को चरितार्थ करने वाले तथाकथित अत्यधिक विद्वानों को तिलांजलि देकर आदरणीय श्री मोहन सिंह सलाथिया जी को "पद्मश्री" सम्मान के लिए क्यों चुना था?
जिसके उपरांत पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित माननीय वयोवृद्ध साहित्यकार श्री नरसिंह देव जम्वाल जी की बारी आई थी जिन्होंने डोगरा ही नहीं बल्कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की संसदीय भाषा की मर्यादित सीमाओं से प्रदर्शन करते हुए अकादमी के आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी द्वारा डोगरा होने के बावजूद डोगरी भाषा में स्वागत नहीं करने पर आपत्ति जताते हुए "इक्कीसवीं सदी के डोगरी साहित्य में राष्ट्रीय भावना" की कठोर सार्थकता को सिद्ध कर उपस्थित अतिथियों को कृतार्थ किया और सम्पूर्ण डोगरों की ओर से राष्ट्र को सशक्त संदेश दिया कि राष्ट्रीय भावनाओं में हम किसी से कम नहीं हैं। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
बिरादरी की दोनों सभाओं का जीवन सदस्य
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।