जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू इन दिनों चर्चाओं के गलियारों में है। जिसमें हिंदी क्षेत्र के वरिष्ठ रचनाकारों में युद्ध स्तर पर मंथन हो रहा है कि मंचासीन होने हेतु आयोजकों के तलवे चाटना क्या न्यायोचित है ? जो निस्संदेह कई भागों में बंट गया है। परन्तु उनमें मुख्यतः एक ओर चाटुकार और दूसरी ओर स्वाभिमानियों ने मोर्चा संभाला हुआ है।
सर्वविदित है कि देश सेंकड़ों वर्ष पराधीन रहा है। विशेष रूप से अंग्रेजों के अधीन रहा है। जो भारतीयों पर नियंत्रण रखने के लिए भारतीयों का ही प्रयोग करते थे। जो भलीभांति जानते थे कि भारतीय शपथ के पक्के होते हैं और "प्राण जाए पर वचन न जाए" की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुतियां दे देते हैं। जिसका ब्रिटिश शासकों ने स्वार्थवश दुरूपयोग किया था और प्रत्येक भारतीय को सेवा से पहले शपथ ग्रहण करवाई जाती थी। जिस शपथ में सुनिश्चित किया जाता था कि सेवक कर्मचारी हो या अधिकारी वे सदैव ब्रिटिश शासकों के प्रति प्रतिज्ञाबद्ध रहेंगे। उनके पक्ष में झूठ बोलेंगे। दूसरे भारतीयों की हत्याओं में भी ब्रिटिश सरकार का पक्ष लेंगे। यहां तक कि वह भारत के स्थान पर इंग्लैंड को अपना देश समझेंगे और उसी का गुणगान करते हुए भारत का पक्ष रखने वालों को देशद्रोही मानने हुए उनकी हत्या या उन्हें फांसी पर लटकाना उसका मौलिक कर्तव्य होगा। उनका मौलिक कर्तव्य यह भी होगा कि वह ली गई शपथ को गुप्त भी रखेंगे और यदि उनमें से कोई उक्त शपथग्रहण को सार्वजनिक करेगा तो यह भी उसका देशद्रोह माना जाएगा।
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त शपथग्रहण के दुष्परिणामों को आज भी अनुभव किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत प्रशासनिक कनिष्ठ अधिकारीयों से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक भारतीय नागरिकों को सार्वभौमिक झूठ परोस रहे हैं। जिसके आधार पर भारतीय सभ्यता और संस्कृति ही नहीं बल्कि भारतीयता भी लुप्त हो चुकी है। जिसके अंतर्गत आयोजकों के चाटुकार अर्थात चापलूस, खुशामदी, तलवेचाट, स्तुतिकर्ता, मिठबोले, मक्खनबाज एवं अत्यनुरोधी लेखक अज्ञानी होते हुए भी मंचासीन हो रहे हैं और स्वाभिमानी विद्वान राष्ट्र के प्रति जागरूक सृजनात्मक लेखन के धनी लेखकों का भरपूर तिरस्कार हो रहा है। हालांकि देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है
वर्णनीय है कि उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर बुद्धिजीवियों को निरंतर बिंदास पूछा जा रहा है कि क्या मंचासीन/एक समोसा/₹1350 इत्यादि की स्वार्थसिद्धि के लिए हिंदी भाषा के प्रोफेसरों, डॉक्टरों और साहित्यकारों द्वारा आयोजकों के तलवे चाटना क्या न्यायोचित है? क्या इसके कारण आज तक जम्मू कश्मीर राज्य/प्रदेश का कोई भी लेखक साहित्य अकादमी दिल्ली के हिंदी परामर्श बोर्ड का कन्वीनर तो क्या सदस्य तक नहीं बन सका? संभवतः किसी भी हिंदी भाषा के लेखक ने (यदि किसी ने प्राप्त किया हुआ है तो कृपया मार्गदर्शन करें) साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त नहीं किया है।
जबकि जम्मू और कश्मीर की विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा को निरंतर पढ़ाया जा रहा है। जहां से हर वर्ष हिंदी के स्नातकोत्तर की उपाधि ही नहीं बल्कि साहित्य वाचस्पति (DOCTOR OF LITERATURE) की उपाधियां भी ली जा रही हैं। जिनपर योग्यता के आधार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या जम्मू और कश्मीर की विश्वविद्यालयों से उत्तीर्ण स्नातकोत्तर/साहित्य वाचस्पति के उपाधि प्राप्तकर्ता अयोग्य हैं या विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले प्रोफेसर अक्षम हैं?
देखने को मिलता है कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू द्वारा आयोजित संगोष्ठियों/कवि सम्मेलनों में अधिकांश कवियों के आगे प्रोफेसर/डॉक्टर लगा होता है और कतिपय कवियों के नाम के आगे कुछ भी नहीं होता है। कई बार तो कवि सम्मेलन कम और प्रोफेसर सम्मेलन अधिक लगता है। इसलिए जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू के मुख्य सम्पादक आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी आमंत्रित कुछ विद्वान डॉक्टरों/प्रोफेसरों को मंच पर आसीन कर देते हैं। जिनसे साहित्यिक प्रश्न पूछने पर उचित उत्तर नहीं मिलते। जिससे उनकी योग्यता गधे के सिर से सींग की भांति लुप्त हो जाती है। जिसपर शोधार्थियों द्वारा शोध करने पर जानकारी प्राप्त होती है कि मंच पर आसीन होने वाले मंचासीन व्यक्तित्व उक्त शोभा पाने हेतु गुप्त रूप से सर्वप्रथम कार्यक्रम में बुक होने और 1350 रूपए पारितोषिक प्राप्त करने हेतु आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी के तलवे चाटते हैं। जो घिनौना कर्म प्रोफेसरों के साथ-साथ जम्मू और कश्मीर की विश्वविद्यालयों को भी कलंकित करता है।
रही बात सुनी सुनाई पटकथा पर आधारित जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू के मुख्य सम्पादक आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी के मानहानि नोटिस जारी करने और मानहानि की आपराधिक पुष्टि होने के उपरांत मुझे माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीश द्वारा निर्धारित दो वर्ष के कठोर कारावास के दण्ड की तो बताते हुए मैं गौरवान्वित हो रहा हूॅं कि तब तक मैं राष्ट्र के प्रति अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक पूरा कर चुका हूंगा। जिसके फलस्वरूप लेखन क्षेत्र में मुझे मिले कठोर कारावास के दण्ड को मैं अपना सौभाग्य समझते हुए प्रसन्नतापूर्वक जेल जाऊंगा और उक्त दण्ड को "भारत रत्न" पुरस्कार मानते हुए सीना तान कर गौरवान्वित अनुभव करूंगा। सम्माननीयों ॐ शांति ॐ